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साहित्य लहर

कविता : रात की बात…!

कविता : रात की बात…! रौशनी रहते न देख पाएगा, कदम डगमगाएगा और तू, लड़खड़ा कर गिर जाएगा, जबकि रात काली… पास बुलाएगी, देकर थपकी सुलाएगी, तुम्हें अपनों के पास लाएगी, प्रेम बढ़ाएगी, सपने दिखाएगी, नवाब मंजूर की कलम से…

रात
गहरी काली भी
होती है
मतवाली।
न भाग तू उजाले की ओर…
चकाचौंध में फंस जाएगा

रौशनी रहते न देख पाएगा
कदम डगमगाएगा और तू
लड़खड़ा कर गिर जाएगा!

जबकि रात काली…
पास बुलाएगी
देकर थपकी सुलाएगी
तुम्हें अपनों के पास लाएगी

प्रेम बढ़ाएगी, सपने दिखाएगी
जीना जीवन सिखाएगी
और तो और
वही भोर नया भी लाएगी!

मेरे विचार : मैं कौन हूं, लक्ष्यविहीन जीवन…!


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कविता : रात की बात...! रौशनी रहते न देख पाएगा, कदम डगमगाएगा और तू, लड़खड़ा कर गिर जाएगा, जबकि रात काली... पास बुलाएगी, देकर थपकी सुलाएगी, तुम्हें अपनों के पास लाएगी, प्रेम बढ़ाएगी, सपने दिखाएगी, नवाब मंजूर की कलम से...

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