_____

Government Advertisement

_____

Government Advertisement

_____

साहित्य लहर

कविता : पत्थर

कविता : पत्थर, मेरे दर्द से तुझे न मतलब रहा, इंसान तू बहुत खुदगर्ज रहा, तू टुकड़े करता रहा लाख मेरे, पर मैं भी मजबूत हूं दिल से, अपनी जरूरत के लिए पूजा, मैं दिल से सालेग्राम हो गया, ग्वालियर (मध्य प्रदेश) से आशी प्रतिभा दुबे (स्वतंत्र लेखिका) की कलम से…

उकेरते जाते हैं अक्स, तो सितम ढाती हैं छैनी
यहां दर्द की परिभाषा, मेरी ,जाने भला कौन
हूं मोन ही बस मोन।।

बिखरी पड़ी है इमारतों पर कई सालो से भाषाओं की,
उकेरी गई हर प्रतिलिपि यहां
मेरी दर्द की तस्वीर की तरह।।

में तराशा गया ,तुम्हारे लिए, कभी गुम्मद हुआ मकबरे का
कभी सजाया गया मंदिरों में,
कभी दीवार तो कभी मीनार, और कभी नीव का पत्थर बना।।

जरूरतें तुम्हारी ही रही सदैव, और काटकर लाया गया मुझे
दास्तान तो तुम्हारी ही रही हैं, तराशा गया हमेशा ही मुझे।।

मेरे दर्द से तुझे न मतलब रहा, इंसान तू बहुत खुदगर्ज रहा
तू टुकड़े करता रहा लाख मेरे, पर मैं भी मजबूत हूं दिल से ।।

अपनी जरूरत के लिए पूजा, मैं दिल से सालेग्राम हो गया
तूने अपनाया जब भी मुझे, में तेरा मकान की दीवार हो गया ।।

जो कपड़े न पहने वो मुझे अच्छी लगती हैं : बाबा रामदेव


👉 देवभूमि समाचार में इंटरनेट के माध्यम से पत्रकार और लेखकों की लेखनी को समाचार के रूप में जनता के सामने प्रकाशित एवं प्रसारित किया जा रहा है। अपने शब्दों में देवभूमि समाचार से संबंधित अपनी टिप्पणी दें एवं 1, 2, 3, 4, 5 स्टार से रैंकिंग करें।

कविता : पत्थर, मेरे दर्द से तुझे न मतलब रहा, इंसान तू बहुत खुदगर्ज रहा, तू टुकड़े करता रहा लाख मेरे, पर मैं भी मजबूत हूं दिल से, अपनी जरूरत के लिए पूजा, मैं दिल से सालेग्राम हो गया, ग्वालियर (मध्य प्रदेश) से आशी प्रतिभा दुबे (स्वतंत्र लेखिका) की कलम से...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Devbhoomi Samachar
Verified by MonsterInsights