कविता : गरीबों पर राजनीति

आशुतोष
नेताओं की रैलियाँ
देखो जमने लगी
चुनाव की रणनीति
परवान चढ़ने लगी।।
दहशत के मारे
सहमे-सहमे हैं लोग
अब तो खाकी भी
लोगों को ठोकने लगी
नेताओं की रैलियाँ
देखो जमने लगी
चुनाव की रणनीति
परवान चढ़ने लगी।
चारो तरफ शोर है
कहीं आरक्षण कही किसान
हाहाकार के सागर में
लोग हैं परेशान
मँहगाई मुँह चिढ़ाने लगी
यह कैसी विकास आने लगी
नेताओं की रैलियाँ
देखो जमने लगी
चुनाव की रणनीति
परवान चढ़ने लगी।
न बदनामी का डर
न न्याय की चिंता
ऐसे में मौज उड़ा रहे
भगोड़े मेहमान
फिर कैसे न हो देश महान
देखकर भारत माँ रोने लगी
नेताओं की रैलियाँ
देखो जमने लगी
चुनाव की रणनीति
परवान चढ़ने लगी।
सबका एक फार्मूला है
चाहे कुछ भी हो
अपना झोला भरना है
गरीब-गरीब कहकर
फंडे आने लगी
लोगो को लड़ाकर
सारा गटक जाने की
दिनचर्या बदलने लगी
नेताओं की रैलियाँ
देखो जमने लगी
चुनाव की रणनीति
परवान चढ़ने लगी।
बदलना है नहीं इनको
बस अपनी भूख मिटाने लगीं
चंद वोटो की खातिर
रोज नये मुद्दे उठाने लगी
समाज अपनी पहचान
दखो न अब खोने लगी
लाशों की मंडियाँ
देखो सजने लगी
चुनाव की रणनीति
परवान चढ़ने लगी।
¤ प्रकाशन परिचय ¤
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From »आशुतोष, लेखकपटना, बिहारPublisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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