कविता : स्वार्थ की इस दुनियां में कोई किसी का नहीं

सुनील कुमार माथुर
स्वार्थ की इस दुनियां में कोई किसी का नहीं
हर कोई अपने स्वार्थ की खातिर
एक – दूसरे से मिल रहा हैं
इस मिलन में कहीं भी
प्रेम , स्नेह व विश्वास का भाव
नजर नहीं आ रहा है
केवल स्वार्थ की बू आ रहीं है
भाई – भाई की हत्या कर रहा हैं
पुत्र माता – पिता की उपेक्षा कर रहा हैं
दोस्त अब दोस्त नहीं रहें वे भी
अपने स्वार्थ सिध्दि में लगें है
प्रशासन के पास
जनता-जनार्दन को सुनने का
वक्त नहीं है वह तो स्वंय
परिवार का लालन पालन की खातिर
झूठी सुनवाई करता हैं चूंकि
राहत देने के नाम पर
उसके पास कोई बजट नहीं
कोई पाॅवर नहीं
हां गरीब को डांट डपलाई
वह जरूर कर देगा और
धमकी देकर भगा देगा
पीडित को लज्जित, अपमानित
वह जरूर कर देगा लेकिन
पूंजीपतियों की सहायता
वह गलत कदम उठाकर भी कर देगा
चूंकि
वह पूंजीपतियों की बोली बोलना जानता हैं
हमारे जनप्रतिनिधि वोटों की राजनीति करतें है
चुनाव जितने के बाद
वे जनता की तनिक भी नहीं सुनते हैं
सता की कुर्सी पर बैठकर
वे मात्र अपने व अपने परिवारजनों की
सुख सुविधाओं का ही ख्याल रखते हैं
जनता-जनार्दन की पीडा से
उन्हें कोई लेना – देना नहीं
जनता से नित नये वायदे कर वे
नित नयी योजना बनाते हैं और
विकास व जन कल्याण के नाम पर
सारी राशि हडप जाते हैं
स्वार्थ की इस दुनियां में कोई किसी का नहीं है
सब अपने स्वार्थ की खातिर
एक – दूसरें से मिल रहें है और
मन मे राम बगल में छुरी
वे धडल्ले से चला रहे हैं
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Very true, all are selfish only
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Ture aaj ka samay aisa hi hai