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साहित्य लहर

कविता : न पूछ

कविता : न पूछ… उड़ने आसमां में … आ गए तो शहर अंदर फड़फड़ा रहा है फाख्ता घर का सुबह की चाय काली हँस रही है जेहन को याद है वो नाश्ता घर का स्वप्न देखा है भोर में मैंने हटा रहा हूँ पर्दा आहिस्ता घर का रात इंतजाम में कट रही है यहाँ क्या क्या खूब था इंड -ए -हफ्ता घर का गुलजार रहना और गुलजार कर देना… #सिद्धार्थ गोरखपुरी

न पूछ हमसे रास्ता घर का
जरूरतें दें गईं हैं वास्ता घर का

शहर से जरूरतन मोहब्बत है
और दिल में है राब्ता घर का

उड़ने आसमां में … आ गए तो शहर
अंदर फड़फड़ा रहा है फाख्ता घर का

सुबह की चाय काली हँस रही है
जेहन को याद है वो नाश्ता घर का

स्वप्न देखा है भोर में मैंने
हटा रहा हूँ पर्दा आहिस्ता घर का

रात इंतजाम में कट रही है यहाँ
क्या क्या खूब था इंड -ए -हफ्ता घर का

गुलजार रहना और गुलजार कर देना
लाजवाब है आदत -ए -शाइस्ता घर का

कविता : प्यार की कसम


कविता : न पूछ... उड़ने आसमां में ... आ गए तो शहर अंदर फड़फड़ा रहा है फाख्ता घर का सुबह की चाय काली हँस रही है जेहन को याद है वो नाश्ता घर का स्वप्न देखा है भोर में मैंने हटा रहा हूँ पर्दा आहिस्ता घर का रात इंतजाम में कट रही है यहाँ क्या क्या खूब था इंड -ए -हफ्ता घर का गुलजार रहना और गुलजार कर देना... #सिद्धार्थ गोरखपुरी

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देवभूमि समाचार में इंटरनेट के माध्यम से पत्रकार और लेखकों की लेखनी को समाचार के रूप में जनता के सामने प्रकाशित एवं प्रसारित किया जा रहा है।

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