कविता : आकाश की नीलिमा

आकाश की नीलिमा, खदानों में, गर्द गुबार का धुआं, धरती की अतल गहराई से फूटता अरी सुंदरी, हमारा मन तुमसे, कभी नहीं रूठता, यातनाओं के जंगल में, तुम्हारी मुस्कान, हरियाली की तरह है, चांदनी रात में नदी, बेख़ौफ़ होकर बह रही है #राजीव कुमार झा
तुम्हारे रूप का जादू
जिंदगी की वादियों को
गुलज़ार कर देता
अरी सुंदरी
हमारी झोपड़ी में सूरज
आकर कहता
आकाश कितनी दूर तक
बाहर फैला
सतरंगी रोशनी में
कितना सुन्दर लगता
ग्रीष्म ऋतु में
धरती का यह रंग मटमैला
तुम हंसती हो
मन का मैल
नदी की धारा में
जिंदगी का झाग बन जाता
अंधेरे में आकाश
सभी दिशाओं में
चुप हो जाता
किसका मन हमें
रोज अपने पास बुलाता
कोई तारा आकाश में
अकेला उग आता
समुद्र शोर मचाता
धरती पर जिंदगी को
खत्म होने से
सूरज बचाता
आदमी कल कारखाने
चलाता
जहर का धुआं
आकाश की नीलिमा में
बिखरता चला जाता
शहर में सबका दम घुटता
खदानों में
गर्द गुबार का धुआं
धरती की अतल गहराई से
फूटता
अरी सुंदरी
हमारा मन तुमसे
कभी नहीं रूठता
यातनाओं के जंगल में
तुम्हारी मुस्कान
हरियाली की तरह है
चांदनी रात में नदी
बेख़ौफ़ होकर बह रही है
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