
सुनील कुमार माथुर
हे मेरे कान्हा ! हे मेरे कृष्ण कन्हैया !!
अब तुझ जैसे नटखट बच्चे कहा
अब माक्खन की हंडिया कहां
अब बाल गोपाल रूपी ग्वाले कहां
अब घर – घर गायें कहां
हे मेरे कान्हा ! हे मेरे कृष्ण कन्हैया !!
अब तुझ जैसे नटखट बच्चे कहां
आज तुम जैसी शैतानी कहां
पहले जैसी गोपियां कहां
आज के बच्चे जन्म के साथ ही
ए सी कारों में घूमते हैं
पांच सितारा होटलों में
अपना जन्म दिन मनाते हैं
अब जन्म दिन पर माक्खन की हंडिया कहां
अब तो केक काटे जाते हैं
जन्म दिन पर दीपक न जलाकर
फूंक मारकर मोमबती बुझाई जाती हैं
आज बच्चे दिन भर मोबाइल से चिपके रहते हैं
हे मेरे कान्हा ! हे मेरे कृष्ण कन्हैया !
अब पहले वाले खेल कहां है
हें मेरे कान्हा ! हें मेरे कृष्ण कन्हैया !
अब तुझ जैसे नटखट बच्चे कहां हैं
अब माक्खन की हंडिया कहां है
हे मेरे कान्हा ! हे मेरे कृष्ण कन्हैया !
यह कैसी विडम्बना है कि
आज हम ही अपनी सभ्यता और
संस्कृति को भूलते जा रहें है
हे मेरे कान्हा ! हे मेरे कृष्ण कन्हैया!
¤ प्रकाशन परिचय ¤
![]() | From »सुनील कुमार माथुरस्वतंत्र लेखक व पत्रकारAddress »33, वर्धमान नगर, शोभावतो की ढाणी, खेमे का कुआ, पालरोड, जोधपुर (राजस्थान)Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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