कभी अलविदा ना कहना
कभी अलविदा ना कहना… कभी कोई सम्पादक सुनील से कहता कि रचनाएं मौलिक और अप्रकाशित ही भेजे तो वो जवाब में कहते कि आपके यहां काफी विलम्ब से रचना प्रकाशित होती है वह भी केवल एक समाचार पत्र में। लेखक का लेखन नियमित रूप से होता है और उसकी हर रोज रचनाएं प्रकाशित होती है। #सुनील कुमार माथुर, जोधपुर, राजस्थान
सुनील की साहित्य में गहरी रुचि थी। उसके आलेख व पत्र हर रोज किसी न किसी स्थानीय, राज्य व राष्ट्रीय स्तर की पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होते ही रहते थे। सुनील जैसा देखता था, वैसा ही लिखता था। यहीं वजह है कि उसके ध्दारा लिखी रचनाएं व समाचार तत्काल पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हो जाया करते थे। उसकी ईमानदारी, कार्य के प्रति निष्ठा और कर्म ही पूजा है इस ध्येय के आधार पर अनेक पत्र पत्रिकाओं के सम्पादक मंडल ने सुनील की सेवाएं ली और उसने सेवा भाव से काम किया।
उसने कभी भी दबाव में आकर लेखन का कार्य नहीं किया। वह तो अपनी मर्जी का राजा था यहीं वजह है कि वह उस पर दबाव बनाने वाले सम्पादकों को समय-समय पर खरी खोटी भी सुना देता था। नतीजन फिर उन पत्र पत्रिकाओं से वो ब्लैक लिस्ट हो जाता था, लेकिन इस बात की उसने कभी भी चिंता नहीं की। चूंकि वह तो मां सरस्वती का पुजारी था और उसकी लेखनी में दम था। संपादक मंडल से पंगा लेना धीरे-धीरे उसकी आदत बन गई थी। लेकिन वो कभी टूटा नहीं, किसी के समक्ष झुका नहीं।
सुनील की लेखनी की हर कोई तारीफ करते हुए थकता नहीं। चूंकि वो हमेंशा से सत्य, निष्पक्षता व सामाजिक सरोकार पर आधारित लेखन कार्य करता आ रहा था। इससे उसके कुछ लोग दुश्मन भी बन गए थे। यह देखकर उसके साथी भी परेशान रहते थे। सुनील प्रायः सम्पादक मंडल के साथियों से मजाक में कहता था कि अगर किसी दिन मैं मर गया तो आप मेरी कितनी बडी खबर प्रकाशित करोंगे तो एक ही जवाब मिलता सुनील जी आप कभी भी अलविदा ना कहना। ईश्वर आपकों लम्बी उम्र दें।
कभी कोई सम्पादक सुनील से कहता कि रचनाएं मौलिक और अप्रकाशित ही भेजे तो वो जवाब में कहते कि आपके यहां काफी विलम्ब से रचना प्रकाशित होती है वह भी केवल एक समाचार पत्र में। लेखक का लेखन नियमित रूप से होता है और उसकी हर रोज रचनाएं प्रकाशित होती है। लेखक एक समाचार पत्र पर ही निर्भर नहीं रह सकता। कोई पारिश्रमिक नहीं मिलता है जो बाध्य रहे। प्रशंसा करने वाले कहते बहुत अच्छा लिखा है। आपकी कलम को सलाम हैं। कोई कहता कि आपने बहुत अच्छे विचार प्रकट किये है जो कि तारीफें काबिल है। आप जैसे सच्चे साहित्यकार ही खरी खरी बातें लिख सकते है।
कोई कहता आलेख बहुत ही बेहतरीन व शिक्षाप्रद। कल लेखक सुनील शाम के वक्त पार्क में घूम रहा था तभी कुछ असामाजिक तत्वों ने उस पर हमला कर दिया और वो सभी साहित्य प्रेमियों को अलविदा कर गया। अब तो उसकी केवल यादें रह गई है। लेकिन वो समाज व राष्ट्र के प्रति अपना मानवीय धर्म निभा कर उसे पूरा कर गया। कलम का सिपाही चला गया और उसके जाने से साहित्य जगत को जो क्षति हुई उसकी पूर्ति करना असम्भव है।