मोह और अंहकार
मोह और अंहकार… इसलिए इंसान को लडाई – झगड़ों से दूर रहना चाहिए और दया, परोपकार, धैर्य, सहनशीलता, मिलनसारिता, वात्सल्य, अहिंसा, त्याग, त्याग, संयम का मार्ग अपनाते हुए आदर्श जीवन व्यतीत करना चाहिए। जो अंहकार मुक्त जीवन व्यतीत करता हैं वहीं सुखी रहता हैं और महान व्यक्तित्व का धनी कहलाता है। #सुनील कुमार माथुर, जोधपुर, राजस्थान
इंसान आज मोह और अंहकार में जी रहा हैं जो उसकी सबसे बड़ी भूल हैं। जो व्यक्ति मोह व अंहकार में जीता हैं उसे ये ऐसे बर्बाद कर देते हैं कि फिर उन्हें बर्बाद करने के लिए किसी शत्रु की जरूरत नहीं है। अंहकार ही मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है।
अंहकार, मोह माया, लोभ लालच में इंसान अच्छे बुरे का फर्क तक भूल जाते हैं। अतः वे उस वक्त उसी कार्य को सर्वश्रेष्ठ मानते हैं जिससे उन्हें लाभ होता हो। वे गलत को सही मानते हुए स्वत: ही पतन के गर्त में गिरते जातें हैं और जब उन्हें अपनी गलती का अहसास होता है तब तक काफी देर हो चुकी होती है।
अतः इंसान को मोह व अंहकार का त्याग करना चाहिए और सकारात्मक सोच के साथ जीवन में आगे बढते रहना चाहिए। सकारात्मक सोच से नयी ऊर्जा का संचार होता है और हमें उत्साह व उमंग की प्राप्ति होती है जिसके कारण हम अपनी मंजिल को पूरी ईमानदारी व निष्ठा के साथ प्राप्त कर सकते हैं। ईमानदारी जीवन का अनमोल रत्न है जो हमें कंचन की तरह बनाता हैं, वहीं दूसरी ओर हमारे व्यक्तित्व में निखार आता है।
इसलिए इंसान को लडाई – झगड़ों से दूर रहना चाहिए और दया, परोपकार, धैर्य, सहनशीलता, मिलनसारिता, वात्सल्य, अहिंसा, त्याग, त्याग, संयम का मार्ग अपनाते हुए आदर्श जीवन व्यतीत करना चाहिए। जो अंहकार मुक्त जीवन व्यतीत करता हैं वहीं सुखी रहता हैं और महान व्यक्तित्व का धनी कहलाता है।