क्या हम आज आजादी के मायने ही भूल गये…?

सुनील कुमार माथुर

हमारे आजादी के दीवानों ने हंसते-हंसते अपने प्राणों की आहुति देकर भारत माता को अंग्रेजी दासता से मुक्त कराया । इसके पीछे उनका कोई भी स्वार्थ नहीं था । लेकिन आजादी के इन ७५ वर्षो में हम आज़ादी के मायने ही भूल गयें । आजादी का अर्थ हम अपनी मनमानी से लगाने लगे है जो कदापि भी सही नहीं है ।

हमारे आजादी के सिपाहियों ने अपने प्राणों की जो आहुति दी है उसे बनायें रखना आज की युवापीढ़ी की ही जिम्मेदारी है । चूंकि उन सेनानियों के त्याग व बलिदान को जीवन में आत्मसात करके ही आगे बढना है और तभी हम अपने जीवन में सफल हो पायेगे ।

हमारी इस मनमानी का ही परिणाम है कि आज देश में असंतोष का माहौल पैदा हो रहा है जो उचित नहीं है । आजादी के इस अमृत महोत्सव पर हम प्रतिज्ञा ले कि एक नये भारत का नव निर्माण करे और हर भारतवासी प्रेम – स्नेह और भाईचारे की भावना को को अपने जीवन में धैर्य के साथ धारण करें ।

सहनशीलता को अपनाये । नम्रता और विनम्रता को अपनाये । मानवीय मूल्यों की रक्षा करे । चरित्रवान , ज्ञानवान और संस्कारवान बनकर पीडित मानवता की सेवा करें । अनुशासन में रहकर नैतिकता का ध्यान रखते हुए आदर्श जीवन व्यतीत करें । यही असली आज़ादी का मूल मंत्र है । कहने का तात्पर्य यह हैं कि आजादी के इस अमृत महोत्सव की सार्थकता तभी है जब हम आदर्श संस्कारों को अपने जीवन में आत्मसात कर उसके अनुरुप जीवन व्यतीत करें।


¤  प्रकाशन परिचय  ¤

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सुनील कुमार माथुर

लेखक एवं कवि

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33, वर्धमान नगर, शोभावतो की ढाणी, खेमे का कुआ, पालरोड, जोधपुर (राजस्थान)

Publisher »
देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड)

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