ईश्वर की चेतावनी
ईश्वर की चेतावनी, आग तेज नहीं होने से केवल बिस्तर बीच में से काफी जल गया जिसका किसी को भी आभास नही हुआ जोधपुर (राजस्थान) से सुनील कुमार माथुर की कलम से…
ईश्वर की भक्ति कोई आसान कार्य नहीं है । ईश्वर की भक्ति के लिए इंसान को तपना पडता है । केवल मंदिर में या पूजा स्थल पर जल चढा देना, प्रसाद चढा देना और दीपक जलाकर घंटी बजा देना ही ईश्वर की भक्ति नहीं है। हम मूर्खतावश इसी ईश्वर की भक्ति मान बैठे है । ईश्वर की भक्ति में एकाग्रचित होना पडता है । उस वक्त ईश्वर के अलावा हम सभी को भूल जाते है । उसमें इतना लीन हो जाते हैं कि हमारे आस पास क्या हो रहा है इसका भी हमें आभास नहीं होता हैं । लेकिन अंहकार व क्रोध के आगे हम किसी को कुछ नहीं गिनते हैं । यही हमारी मूर्खता है । अंहकार ही हमारा सबसे बडा शत्रु है । जब अंहकार व क्रोध इंसान पर हावी हो जाते है तब इंसान की बुध्दि भ्रष्ट हो जाती हैं और उसे अच्छा बुरा कुछ भी दिखाई नहीं देता है और वह अपने ही पैरों पर कुल्हाडी मार बैठता है यानि अपने ही हाथों अपना नुकसान कर बैढता हैं।
ईश्वर कभी भी किसी का नुकसान नहीं करते है लेकिन समय समय पर भक्तों को किसी न किसी बहाने चेतावनी अवश्य देते रहते हैं जिसकों यह साधारण इंसान आसानी से समझ नही पाता है । मेरे परिवार में शुरू से ही मैं ही पूजा पाठ करता आया हूं नवरात्रि चल रही थी । रोज माता जी के सवेरे चूरमा और गुड के शर्बत का भोग लगाया करता था । अष्टमी को कोरे पान और पेडे का भोग हमारे यहां माताजी को लगाया जाता है । लेकिन उस दिन मेरे से मिलने आने वालों का तांता सा लग गया और मैं समय पर स्नान न कर सका जिसके कारण माताजी के पान और पेडे का भोग लगने से रह गया और डेढ बजे स्नान कर और खाना खाकर मैं सीधा आफिस चला गया ।जिसके कारण सवेरे की पूजा रह गई।
समय पर भोग न लगने से माताजी नाराज हो गयी और उस दिन पलंग पर बिछे हुए बिस्तर में दोपहर में अपने आप आग लग गयी। आग तेज नहीं होने से केवल बिस्तर बीच में से काफी जल गया जिसका किसी को भी आभास नही हुआ जबकि उसी कमरे के बाहर आठ – दस लोग बैठे हुए गांधी पिक्चर देख रहे थे । किसी को भी कपड़ा या रूई जलने की बदबू नहीं आई । जब पिताजी कमरे में गये तभी पता चला। आग कैसे लगी इसका हमें आज तक पता नहीं चला उस रात पिताजी को नींद नहीं आई । बस आग लगी तो कैसे लगी । इसी उधेड़बुन में निकल गयी । जब दूसरें दिन उन्होंने मुझे यह बात बताई तो अचानक मुझे झटका लगा और मैंने पिताजी को बताया कि कल माताजी के मैं अष्टमी का भोग न लगा पाया । शायद माताजी ने चेतावनी दी है कि भविष्य में फिर से ऐसी भूल न हो । तभी बिस्तर ही जल कर रह गया वरना अनर्थ हो जाता।
कहने का तात्पर्य यह हैं कि ईश्वर अपने भक्तों को अपनी भूल या गलती का समय समय पर अहसास कराते है लेकिन हम उनकी बात को आसानी से समझ नहीं पाते है । इसलिए कहा जाता हैं कि ईश्वर की भक्ति में भूल नहीं होनी चाहिए और जब भी भजन कीर्तन , पूजा पाठ , कथा और कीर्तन करें तो एकाग्रचित होकर करें और पूजा के बाद ईश्वर से विनती करे कि हे प्रभु ! मुझे माफ करना जो पूजा पाठ की है उसे स्वीकार कीजिये । चूंकि मुझे पूजा पाठ करना नही आता हैं । अतः कोई भूल हुई हो तो क्षमा कर देना । ईश्वर अपने भक्तों की बात को कभी भी अस्वीकार नहीं करते है और भूल को माफ कर देते हैं । तभी तो कहा जाता हैं कि भक्ति में ही शक्ति है।
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