सभी को अच्छा लगता रविवार और सबसे बदनाम विचार वाला सोमवार
सभी को अच्छा लगता रविवार और सबसे बदनाम विचार वाला सोमवार, सोमवार के बारे में बहुत बात हुई है कि सब से ज्यादा आत्महत्याएं सोमवार को ही हुई हैं। अलबत्ता, इस बारे में कोई प्रामाणिक प्रमाण या आधार…
वीरेंद्र बहादुर सिंह
आप को कौन सा दिन अच्छा लगता है? आप से कोई यह सवाल पूछे तो आप क्या जवाब देंगे? शायद आप का जवाब यह होगा कि, रविवार ही होगा न। जो लोग फाइव डेज वीक सिस्टम में काम करते हैं, वे लोग शनिवार-रविवार कहेंगे। पर जब उनसे यह पूछा जाए कि इन दोनों दिनों में उन्हें कौन सा दिन अधिक प्यारा है तो शायद शनिवार कहेंगे। पूरे दिन यही फील होता है कि अभी कल रविवार की भी छुट्टी है। रविवार को तो यह विचार आता है कि कल से फिर काम पर लग जाना है। अब अगला सवाल। सब से न अच्छा लगने वाला कौन दिन है? ज्यादातर लोगों का यही जवाब होगा, सोमवार। शायद इसी पर वह गीत बना है कि, ‘खून चूसने, तू आया खून चूसने, ब्लडी मंडे तू आया खून चूसने।’
सोमवार पर लिखने का विचार इसलिए आया, क्योंकि अभी गिनीज बुक आफ वर्ल्ड रिकार्ड ने सोमवार को सप्ताह का सब से खराब दिन घोषित किया है। छुट्टी के आनंद के बाद काम की शुरुआत करना हो तो थोड़ी दिक्कत तो आएगी ही। वैसे तो छुट्टी के बारे में यह कहा जाता है कि छुट्टी रिलैक्स होने के लिए है, जिससे कि आप अगले दिन नए उत्साह के साथ काम कर सकें। यह बात अलग है कि छुट्टी के बाद उत्साह के बदले आलस होने लगता है। आफिस या अपने-अपने काम पर जाने के बाद काम तो शुरू ही करना पड़ता है। यह जमाना कम्पटीशन का है, इसलिए आप को निश्चित ही अच्छा परफार्म करना पड़ता है।
रविवार के खूब गुणगान गाए जाते हैं, जबकि सोमवार को बदनाम करने में कोई कमी नहीं रहती। जबकि हर किसी की नसीब में रविवार की छुट्टी का आनंद नहीं होता। एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में जो लोग काम करते है, उनके ऊपर सब से अधिक वर्क लोड रहता है। रोजाना काम करने वाले के लिए क्या रविवार और क्या सोमवार? जिन लोगों को रोजाना काम करना पड़ता है, उनकी हालत देख कर तो निदा फाजली का लिखा वह दोहा याद आता है कि, ‘सातों दिन भगवान के, क्या मंगल क्या पीर, जिस दिन सोए देर तक, भूखा रहे फकीर।’ पेट पालने के लिए लोगों को सातोंसात दिन काम करना पड़ता है। होटल वाले और डिलीवरी वाले शनिवार और रविवार को युवकों को ही काम पर रखते हैं। क्योंकि इन दोनों दिनों काम अधिक होता है। गरीब और जरूरतमंद लोगों को सप्ताह में दो दिन ही काम मिल जाए तो खुद को भाग्यशाली मानते हैं। स्कूल-कालेज में पढ़ने वाले ऐसे तमाम बच्चे हैं, जो शनिवार और रविवार काम कर के अपनी पाॅकेटमनी निकाल लेते हैं।
दुनिया की तमाम फिलॉसफी खुश और सुखी रहने के लिए यह कहती है कि वर्तमान में जियो। जो वर्तमान को पूरी तरह एंज्वाय करता है, वही सही तरह से जिंदगी को जीना जानता है। हम लोग दिन के साथ अच्छा और खराब का टैग लगा लेते हैं। इसका कारण यह है कि हम वर्तमान में जी नहीं सकते। रविवार से ही सोमवार का टेंशन करने लगते हैं और मंडे को काम पर जाने का मूड नहीं होता। ऐसे संयोगो में सोमवार कहां से अच्छा लगेगा? दिनों के बारे में तमाम अध्ययन हुए हैं। बुधवार आतेआते मनुष्य का दिमाग थोड़ा लाइट हो जाता है। हमें ऐसा फील होने लगता है कि अब संडे नजदीक आ रहा है। शुक्रवार को मूड मस्त मजे में होता है। रिलैक्स रहना सभी को अच्छा लगता है। यह स्वाभाविक भी है। पर एक थ्योरी यह भी है कि काम है तभी छुट्टी का मजा है और जिसके पास काम नहीं है, उसके लिए तो सभी दिन एक जैसे हैं।
सोमवार के बारे में बहुत बात हुई है कि सब से ज्यादा आत्महत्याएं सोमवार को ही हुई हैं। अलबत्ता, इस बारे में कोई प्रामाणिक प्रमाण या आधार या अध्ययन मिलता नहीं है। वैसे तो दावा यह भी किया जाता है कि सब से ज्यादा आत्महत्याएं सोमवार को नहीं, मंगलवार को हुई हैं। इसका कारण यह बताया जाता है कि रविवार की छुट्टी के बाद सोमवार को काम का प्रेशर होता है। आफिस का वातावरण भी सोमवार को थोड़ा तंग होता है। बाॅस लोग भी उस दिन थोड़ा उग्र होते हैं। उन लोगों को भी शायद यह लगता है कि सप्ताह की शुरूआत में स्ट्रिक्ट नहीं होंगे तो सभी कर्मचारी लेजी मूड में रहेंगे। बाॅस और सीनियर्स अपने अंडर में काम करने वालों पर काम करने का प्रेशर डालते हैं और परिणामस्वरूप कर्मचारी सोमवार शाम तक परेशान हो जाते हैं। नौकरी छोड़ने का निर्णय सब से ज्यादा मनुष्य किस दिन लेता है, इस बारे में भी मतमतांतर है। अंत में इसका दोष भी सोमवार पर ही जाता है।
कुछ लोगों का नेचर वर्कहोलिक होता है। उन्हें रविवार मुश्किल लगता है। काम के बारे में एक फियर भी समझने जैसा है। कुछ लोगों को ऐसा फोबिया होता है कि अगर मैं काम नहीं करूंगा तो मुझे नौकरी से निकाल दिया जाएगा। मैं छुट्टी लूंगा तो मेरी वैल्यू कम हो जाएगी। काम और छुट्टी के बारे में हर किसी की अपनी-अपनी मान्यता होती है। अब तो सोमवार के प्रेशर से बचने के लिए क्या करना चाहिए, इसकी तरह-तरह की टिप्स दी जाने लगी है। रविवार की रात को जल्दी सो जाएं और पर्याप्त नींद लें। सोमवार की शुरुआत स्फूर्ति से करनी है, यह निर्णय लें। सोमवार को जो काम करना हो, इसकी मानसिक तैयारी शनिवार को आफिस छोड़ने के पहले ही कर लें। खुद को काउंसेल करें कि सोमवार भी अन्य दिनों की ही तरह है।
इसलिए उसके बारे में ज्यादा चिंता करने की जरूरत नहीं है। अब सभी काम को अधिक गंभीरता से लेने लगे हैं। छुट्टी और आनंद भी जैसे बहुत बड़ी बात है, इस तरह बर्ताव करने लगे हैं। सही बात तो यह है कि काम को बोझ न समझें। अगर काम को आनंद के रूप में लेंगे तो कोई परेशानी नहीं होगी। जैसे-जैसे समय बीतता है, वैसे-वैसे लोग हर समय हर वस्तु के लिए तरह-तरह की धारणाएं बनाने लगते हैं। इसके कारण एक मानसिकता बनती है। लोग आजकल से ही काम नहीं कर रहे, जब से मनुष्य पैदा हुआ है, तब से काम करता आ रहा है। अब कोई कुछ नईनवाई काम नहीं कर रहा। खेती का काम करने वाले लोग आज भी दिन देख कर नहीं, जरूरत के हिसाब से काम करते हैं। रात को भी खेतों की सिचाई करने जाना पड़ता है। पर कोई किसान यह नहीं कहता कि हम रात शिफ्ट करते हैं। जो काम को बोझ समझता है, उसे काम भार लगता है। ख्याल बदलने की जरूरत है। मानसिकता बदलेंगे तो सभी दिन एक जैसे लगेंगे। वर्क और रेस्ट के बारे में ऐसी सोच रखो कि कोई भी बात कभी भार न लगे।
¤ प्रकाशन परिचय ¤
From » वीरेंद्र बहादुर सिंह लेखक एवं कवि Address » जेड-436-ए, सेक्टर-12, नोएडा-201301 (उत्तर प्रदेश) | मो : 8368681336 Publisher » देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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