विमर्श : अनंत सिंह और मतदान का मूलमंत्र

विमर्श : अनंत सिंह और मतदान का मूलमंत्र, लालू प्रसाद को इसकी चिंता नहीं थी और शहाबुद्दीन से भी उन्होंने हाथ मिला रखा था। बिहार में नरसंहार भी जारी थे। बिहार में अनंत सिंह का नाम भी बाहुबलियों में शामिल है और फिलहाल वह जेल में हैं और उनको नीतीश कुमार ने खूब बढ़ावा दिया था. ✍🏻 राजीव कुमार झा
आजकल सोशल मीडिया पर आनंद मोहन का लोकसभा में दिया पहला भाषण काफी लोकप्रिय हो रहा है और इनके भाषण में ऐसे कोई समस्या नहीं है। इन्होंने राजनीति को किसी भी तरह की दुकानदारी की चीज बनने के खिलाफ भाषण में आवाज बुलंद की है। उस दौर में भाजपा रामजन्मभूमि के नाम पर धर्म की दुकानदारी करके सारे देश में अपना पांव पसार रही थी और बिहार में लालू प्रसाद ने सामाजिक न्याय के नाम पर जातिवाद का परचम फहरा रखा था और ऐसे ही समय में राजनीति में अपराध से जुड़ी बड़ी शख्सियतों ने भी अपने पांव आगे बढ़ाए।
लालू प्रसाद को इसकी चिंता नहीं थी और शहाबुद्दीन से भी उन्होंने हाथ मिला रखा था। बिहार में नरसंहार भी जारी थे। बिहार में अनंत सिंह का नाम भी बाहुबलियों में शामिल है और फिलहाल वह जेल में हैं और उनको नीतीश कुमार ने खूब बढ़ावा दिया था इस बात को सभी लोग जानते हैं। उनका समर्थन पाने के लिए नीतीश कुमार ने खनन विभाग के अधिकारियों को भी लखीसराय बालू घाट का नीलामी पैसा उनसे वसूलने से मना करवा दिया। अनंत सिंह पटना में जो भी उनके निर्वाचन क्षेत्र का उनके घर पर जाता है सारे लोगों को चाय नाश्ता और खाना खिलाते हैं। ब्राह्मण सब को अपना समर्थक नहीं मानते हैं।
ब्राह्मण इनके इलाके में काफी कम तादाद में भी हैं और उनके वोटों की कोई कीमत उनकी नजर में नहीं होगी लेकिन ब्राह्मणों के बारे में उल्टी पुल्टी बात बोलना गलत है और इससे उनकी अपनी बेइज्जती होती है। ब्राह्मण सब को क्या मतलब है कि वह चुनाव लड़ते हैं या रैली करवाते हैं। बड़हिया और मोकामा का कोई ब्राह्मण पटना में उनके घर पर चाय नाश्ता और खाना खाने नहीं जाता है और अपना सब पूजा पाठ में लगा रहता है तो फिर ब्रा ह्मणों के बारे में यह बोलना उनको शोभा नहीं देता है कि ब्राह्मण सब हमें वोट नहीं देगा।
वह प्रेस कांफ्रेंस में ऐसा क्यों बोलते हैं कि ब्राह्मण सब से हमको कोई मतलब नहीं हैं। उनको यह समझना चाहिए कि ब्राह्मण सब कम से कम आज भी अपने मन से ही किसी को वोट देता है और यही समझदारी लोकतंत्र में मतदान का मूलमंत्र है। अनंत सिंह को इसे समझना चाहिए कि राजनीति में एक नेता को सबको साथ लेकर चलना चाहिए और आनंद मोहन ने इस बात को नजर अंदाज किया था।
मुजफ्फरपुर में आखिर अपने हथियार उन्होंने किसके ऊपर उठाये थे और वह इस बात को भूल गये थे कि वहां बिहार की सड़क पर से गुजरने वाला वह आदमी उस समय कोई कलक्टर नहीं था बल्कि इस देश का वह आम आदमी ही था जो दूसरे प्रांतों में भी कमाने खाने जाता है और सबसे विश्वास और प्रेम पाना चाहता है। अपने घर में सबको चाय नाश्ता और खाना की जगह अनंत सिंह अगर सबको सच्चा सद्भाव अगर दें और किसी से कोई मतलब नहीं रखें तो यह बेहतर होगा।
चाय पीने वाले लोग इंदुपुर में भी दरवाजे पर आकर घूमते रहते हैं। एक कप चाय पिलाने में कम से कम दस रुपया खर्च होता है। उस खर्च की जगह आदमी अगर अपने बाल बच्चों को अगर पढ़ाए तो यह बेहतर होगा ताकि उनके बच्चे आईएएस अफसर बन जाएं और कम से कम लखीसराय के बालू घाट पर बालू नीलामी के कामों में फिर वह शामिल नहीं हो।
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