छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक विरासत
छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक विरासत… मध्य प्रान्त और बरार का 1947 ई. में भाग छत्तीसगढ़ था । फजल अली की अध्यक्षता में भाषायी आधार पर राज्य पुनर्गठन आयोग के समक्ष पृथक राज्य की माँग 1953 में की गई। रायपुर के विधायक ठाकुर रामकृष्ण सिंह ने मध्य प्रांत के विधानसभा में पृथक छत्तीसगढ़ की माँग1955 ई. रखी जो की प्रथम विधायी प्रयास था। #सत्येन्द्र कुमार पाठक
मध्य प्रदेश राज्य के अंतर्गत 36 गढ़ युक्त छत्तीसगढ़ राज्य का सृजन 01 नवंबर 2000 ई. में किया गया था। ‘दक्षिण कौशल’ के कारण छत्तीसगढ़ को महतारी का दर्जा प्राप्त है। “छत्तीसगढ़” वैदिक और पौराणिक काल से विभिन्न संस्कृतियों के विकास एवं प्राचीन मंदिर , भग्नावशेष , वैष्णव, शैव, शाक्त, बौद्ध संस्कृतियों का विभिन्न कालों में छत्तीसगढ़ पर प्रभाव रहा है। बिजली और इस्पात का स्रोत है । जगदलपुर में चित्रकोट सिरपुर स्थापत्य समूह, महानदी, चैतुरगढ़, नवा रायपुर, भोरमदेव मंदिर, अचानकमार वन्यजीव अभयारण्य, बस्तर का दशहरा और सतरेंगा जलाशय , 32 जिलों , 11 लोकसभा , 5 राज्य सभा , 91 विधान विधानसभा सदस्य , 139192 वर्गकिमी व 52198 वर्गमील क्षेत्रफल में फैले छत्तीसगढ़ का निर्देशांक : 21°15′N 81°36′E / 21.25°N 81.60°E पर स्थित है। छत्तीसगढ़ की आवादी 29436 हिंदी और छत्तीसगढ़ी भाषायी है ।
“छत्तीसगढ़” नाम का प्रचलन १८ सदी के दौरान मराठा काल में प्रारंभ और “दक्षिण कोशल” के नाम से जाना जाता था। शिलालेख, साहित्यिक , दस्तवेज़ों और विदेशी इतिहास के पन्नों में छत्तीसगढ़ को दक्षिण कोशल एवं 1775 ई. में “छत्तीसगढ़” का प्रथम प्रयोग १७९५ में हुआ था। एक गढ़ में 7 बरहों और 84 गाँव कुल छत्तीस गढ़ थे । छत्तीसगढ़ शब्द की व्युत्पत्ति को लेकर इतिहासकारों में कोई एक मत नहीं है। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि कलचुरी काल में छत्तीसगढ़ आधिकारिक रूप से ३६ गढ़ो में बँटा था, यह गढ़ एक आधिकारिक इकाई थी, नाकि किले या दुर्ग। इन्हीं “३६ गढ़ो ” के आधार पर छत्तीसगढ़ नाम कि व्युत्पत्ति हुई। (१ गढ़ = ७ बरहो = ८४ ग्राम अर्थात छत्तीस गढ़ थे । त्रेतायुग में कोशल’ प्रदेश, कालांतर में ‘उत्तर कोशल’ और ‘दक्षिण कोशल’ नाम से में विभक्त हो गया था । ‘दक्षिण कोशल’ वर्तमान छत्तीसगढ़ क्षेत्र के महानदी ‘चित्रोत्पला’ थी । मत्स्य पुराण[क],
महाभारत के भीष्म पर्व तथा ब्रह्म पुराण के में उल्लेख है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार छत्तीसगढ़ के बीहड़ वनों तथा महानदी स्थित सिहावा पर्वत के आश्रम में निवास करने वाले श्रृंगी ऋषि ने अयोध्या में राजा दशरथ के की पुत्र कामना के लिए पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया था । पुत्रेष्टि यज्ञ के कारण भगवान श्री राम का पृथ्वी पर अवतार हुआ। त्रेतायुग में कौशल के वनों में ऋषि-मुनि-तपस्वी आश्रम बना कर निवास करते थे। त्रेतायुग में छत्तीसगढ़ को दंडकारण्य कहा जाता था । भगवान राम दंडकारण्य में वन प्रवास के दौरान रहे थे । सरगुजा छत्तीसगढ़ का जिला सरगुजा क्षेत्र में मौर्य और नंद काल के सिक्कों की खोज सोने और चांदी के सिक्के, अकलतरा और ठठारी से प्राप्त हुए। प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग के यात्रा विवरण 639 ई. के अनुसार दक्षिण-कौसल की राजधानी सिरपुर थी। बौद्ध धर्म की महायान शाखा के संस्थापक बोधिसत्व नागार्जुन का आश्रम सिरपुर (श्रीपुर) में छत्तीसगढ़ पर सातवाहन वंश की शासन था। महाकवि कालिदास का जन्म स्थली छत्तीसगढ़ है।
दक्षिण-कौसल में मौर्यों, सातवाहनों, वकाटकों, गुप्तों, राजर्षितुल्य कुल, शरभपुरीय वंशों, सोमवंशियों, नल वंशियों, कलचुरियों का शासन था। छत्तीसगढ़ में क्षेत्रिय राजवंशों में प्रमुख बस्तर के नल और नाग वंश, कांकेर के सोमवंशी और कवर्धा के फणि-नाग वंशी , बिलासपुर जिले में स्थित कवर्धा रियासत में चौरा मंदिर को मंडवा-महल कहा जाता है। नागवंशीय राजा रामचंद्र का चौरा मंदिर में स्थित सन् 1349 ई. का शिलालेख में ज नाग वंश के राजाओं की वंशावली है। नाग वंश के प्रथम राजा अहिराज कहे जाते हैं। भोरमदेव के क्षेत्र पर नागवंश का राजत्व 14 वीं सदी तक कायम था । छत्तीसगढ़ के उत्तर में उत्तर प्रदेश और उत्तर-पश्चिम में मध्यप्रदेश का शहडोल संभाग, उत्तर-पूर्व में उड़ीसा और झारखंड, दक्षिण में तेलंगाना, आंध्रप्रदेश और पश्चिम में महाराष्ट्र राज्य की सीमाओं से घिरा छत्तीसगढ़ ऊँची नीची पर्वत श्रेणियों से घिरा हुआ घने जंगलों वाला राज्य है। छत्तीसगढ़ राज्य साल, सागौन, साजा और बीजा और बाँस के वृक्षों की अधिकता है।
उत्तर में सतपुड़ा, मध्य में महानदी और उसकी सहायक नदियों का मैदानी क्षेत्र और दक्षिण में बस्तर का पठार। राज्य की प्रमुख नदियाँ हैं – महानदी, शिवनाथ, खारुन, सोंढूर, अरपा, पैरी तथा इंद्रावती नदी है। मध्यप्रान्त का जिला छत्तीसगढ़ राज्य का निर्माण 2 नवंबर 1861 को मध्य प्रांत का गठन कर राजधानी नागपुर थी। 1862 में मध्य प्रांत में 1862 ई. को छत्तीसगढ़ स्वतंत्र संभाग का मुख्यालय रायपुर था । छत्तीसगढ़ स्वतंत्र प्रभाग में रायपुर, बिलासपुर, संबलपुर जिले का सृजन हुआ था । जशपुर, सरगुजा, उदयपुर, चांगभखार एवं कोरिया रियासतों को 1905 ई. में छत्तीसगढ़ में मिलाया गया था । पंडित सुंदरलाल शर्मा ने 1918 ई. में छत्तीसगढ़ राज्य का स्पष्ट रेखा चित्र अपनी पांडुलिपि में खींचा था । रायपुर जिला परिषद ने 1924 ई.में संकल्प पारित करके पृथक छत्तीसगढ़ राज्य की माँग, कांग्रेस के त्रिपुरी अधिवेशन में पंडित सुंदरलाल शर्मा ने पृथक छत्तीसगढ़ की माँग 1939 ई. , ठाकुर प्यारेलाल ने पृथक छत्तीसगढ़ माँग के लिए छत्तीसगढ़ शोषण विरोध मंच का गठन 1946 ई. में किया था ।
मध्य प्रान्त और बरार का 1947 ई. में भाग छत्तीसगढ़ था । फजल अली की अध्यक्षता में भाषायी आधार पर राज्य पुनर्गठन आयोग के समक्ष पृथक राज्य की माँग 1953 में की गई। रायपुर के विधायक ठाकुर रामकृष्ण सिंह ने मध्य प्रांत के विधानसभा में पृथक छत्तीसगढ़ की माँग1955 ई. रखी जो की प्रथम विधायी प्रयास था। डॉ. खूबचंद बघेल की अध्यक्षता में छत्तीसगढ़ महासभा का गठन 1956 ई. में राजनांदगाँव जिले में किया गया था । भारतीय संविधान के अनुच्छेद 3 के तहत छत्तीसगढ़ राज्य की स्थापना 01 नवम्बर 2000 ई. में हुई । छत्तीसगढ़ का निर्माणरायपुर, बिलासपुर एवं बस्तर के 16 जिलों, 96 तहसीलों और 146 विकासखंडों से किया गया और छत्तीसगढ़ प्रदेश की राजधानी रायपुर को बनाया गया तथा बिलासपुर में उच्च न्यायालय की स्थापना की गई। छत्तीसगढ़ में विधानसभा की प्रथम बैठक 14 दिसंबर 2000 से 20 दिसंबर 2000 तक रायपुर में राजकुमार कॉलेज के जशपुर हाल में हुई थी ।
छत्तीसगढ़ में कुल 32 जिले में कवर्धा जिला , कांकेर (उत्तर बस्तर) , कोरबा , कोरिया , जशपुर , जांजगीर-चाँपा , दंतेवाड़ा (दक्षिण बस्तर) , दुर्ग , धमतरी , बिलासपुर , बस्तर , महासमुंद , राजनांदगाँव जिला , रायगढ़ , रायपुर , सरगुजा , नारायणपुर , बीजापुर , बेमेतरा , बालोद , बलौदा बाजार जिला, बलरामपुर , गरियाबंद , सूरजपुर , कोंडागाँव जिला • मुंगेली जिला • सुकमा जिला • गौरेला-पेंड्रा-मारवाही जिला • मनेंद्रगढ़ जिला • सारंगढ़-बिलाईगढ़ मोहला-मानपुर , सक्ती जिला है। छत्तीसगढ़ी साहित्य और साहित्यकार में छत्तीसगढ़ साहित्यिक परंपरा के परिप्रेक्ष्य में अति समृद्ध प्रदेश छत्तीसगढ़ी और अवधी दोनों का जन्म अर्धमागधी के गर्भ से 1080 वर्ष पूर्व नवीं-दसवीं शताब्दी में हुआ था। भाषा साहित्य पर और साहित्य भाषा पर अवलंबित होते है। छत्तीसगढ़ी लिखित साहित्य के विकास अतीत में स्पष्ट रूप में है। लेखकों ने संस्कृत भाषा को लेखन का माध्यम बनाया और छत्तीसगढ़ी भाषा में साहित्य रचा गया था ।
लेखक गाँव : देवभूमि में विचारों और सृजन की यात्रा का आरम्भ : कोविंद
छत्तीसगढ़ की छत्तीसगढ़ी भाषा हजार वर्ष छत्तीसगढ़ी भाषीय क्षेत्र : छत्तीसगढ़ी गाथा युग – सन् 1000 से 1500 ई. तक छत्तीसगढ़ी भक्ति युग – मध्य काल, सन् 1500 से 1900 ई. तक , छत्तीसगढ़ी आधुनिक युग – सन् 1900 से आज आर्यभाषाओं के छत्तीसगढ़ी में भी मध्ययुग तक सिर्फ पद्यात्मक रचनाएँ हुई है।छत्तीसगढ़ के लोकगीत और लोक नृत्य संस्कृति में छत्तीसगढ़ के प्रमुख और लोकप्रिय गीतों में भोजली, पंडवानी, जस गीत, भरथरी लोकगाथा, बाँस गीत, गऊरा गऊरी गीत, सुआ गीत, देवार गीत, करमा, ददरिया, डंडा, फाग, चनौनी, राउत गीत और पंथी गीत, सुआ, करमा, डंडा व पंथी गीत गाते हैं । खेलों में 1) अटकन-बटकन:- अटकन मटकन दही चटाका लौहा लाटा बन में काँटा चल चल बेटी गंगा जाबो गंगा ले गोदावरी पक्का पक्का बेल खाबो बेल के डारा टुट गे बिहाती डोकारी छूट गे , काऊँ माऊँ मेकरा के झाला फुर्र , बालिकाओं द्वारा खेला जाने वाला फुगड़ी लोकप्रिय खेल है। चार, छः लड़कियाँ इकट्ठा होकर, ऊँखरु बैठकर बारी-बारी से लोच के साथ पैर को पंजों के द्वारा आगे-पीछे चलाती है। थककर या साँस भरने से जिस खिलाड़ी के पाँव चलने रुक जाते हैं वह हट जाती है। लंगड़ी , खुदवा , कबड्डी खेल है ।
छत्तीसगढ़ में जनजातियाँ में गोंड, अमात, हल्बा, कंडरा, कंवर, ठाकुर, बैंगा, मुरिया, माडिया, उरॉव, कमार, भुंजिया, भारिया, बरई, सतनामी, और बियार, मौवार , है। पर्यटन स्थल में खरसिया रॉक गार्डन , राजिम ,महामाया मंदिर, खूँटाघाट बाँध ,मरी माई मंदिर, भनवारटंक ,नवागढ़ , सेतगंगा , चित्रकोट जलप्रपात , तीरथगढ़ जलप्रपात ,इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान ,कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान ,गिरौधपुरी रायपुर ,गुरू घासीदास राष्ट्रीय उद्यान ,कैलाश गुफा ,गंगरेल बांध ,सिरपुर ,मल्हार ,भोरमदेव मंदिर ,मैनपाट , बमलेश्वरी मंदिर , अमरकंटक , मैत्रीब , गिरौदपरी , या गिरोधपुरी , बलौदा बाजार जिले में स्थित नगर रायपुर जिले में जैतस्तम्भ ऊँची किला है ।जल विहार बुका – मड़ई के समीप हरे भरे पहाड़ियों से घिरा हरदेव नदी के चारो तरफ जलमग्न सुंदर प्राकृतिक सौंदय से परिपूर्ण मिनीमाता बांगो बाँध का भराओ वाला जगह है ।
केंदई जल प्रपात – कोरबा जिला मुख्यालय से 85 किलोमीटर की दूरी पर अम्बिकापुर रोड पर स्थित जलप्रपात के नीचे जाने पर इंद्रधनुष की सुंदर चित्र बनती है। गोल्डन आइलैंड – गोल्डन आइलैंड केंदई ग्राम से सात किलोमीटर मीटर दक्षिण में है ।बाबली कूप और जूना – विलासपुर जिले के रतनपुर हैहय वंशीय एवं कलचुरी वंशीय राजाओं का क्षेत्र है । रतनपुर में विभिन्न राजाओं द्वारा स्मारकों , मंदिरों एवं बाबली कूप का निर्माण कराया गया था । कलचुरी वंश एवं हैहय वंश की राजधानी रही थी । कल्चुरी काल में रतनपुर से 4 कि.मी. की दूरी पर जूनाशहर स्थित रहस्यमयी बावली कुंआ का निर्माण कल्चुरी वंशीय राजा राज सिंह द्वारा किया गया था । बावली कूप के अन्दर दो प्रकोष्ठ की दिवारों पर पटाव और नक्काशियां की गई है । बाबली कूप का प्रथम कक्ष स्नानागार र्और द्वितीय कक्ष में भगवान शिव की उपासना के लिए शिवलिंग स्थापित है । बाबली कूप में सुरंग के माध्यम से राजा अपनी सुरक्षा के लिए निर्माण किया था । बाबली कूप का जल सूखने के बाद श्रद्धालुओं द्वारा बाबली कूप स्थित भगवान शिव की उपासना के लिए जाते है ।,
स्नान के बाद पुजा का स्थल था बावली में पानी अधिक होने पर यह दोनो कमरे जलमग्न हो जाते हैं, और बावली में पानी कम होने पर कुंऐ में छिपा हुऐ सुरंग का द्वार देखा जाता है। राजा राजसिंह के शासनकाल में रतनपुर के वास्तुकला से परिपूर्ण राजपुर का रानी कजरा देवी को समर्पित बादल महल एवं सप्तमंजिल भवन निर्मित सतखंडा महल , अस्तबल एवं प्रशासनिक भवन का अवशेष है । रतनपुर और मातृ पितृ भक्त श्रवण कुमार – मातृ पितृ भक्त श्रवण कुमार के माता पिता अंधें थे । श्रवण कुमार अपने माता पिता की बहुत सेवा करते थे उनकी तीर्थ की इच्छा पूरी करने उन्हें दो टोकरी में कांवर बना बैठाकर ले जा रहे थे तभी माता पिता नें प्यास लगने पर श्रवण कुमार को नदी का पानी लेने भेजा तभी शिकार के इंतजार में बैठे अयोध्या के राजा दशरथ नें शब्द भेदी बाण चला दिया जिससे श्रवण कुमार की मृत्यू हो गई लेकिन माता पिता की सेवा और आशीर्वादकी वजह से उन्हें पितृ भक्त श्रवण कुमार के नाम विख्यात है।
छत्तीसगढ़ राज्य का बिलासपुर जिला मुख्यालय विलासपुर से पच्चीस किलोमीटर दूर और महामाया कि नगरी रतनपुर से महज पांच किलोमीटर की दूरी पर स्थित सरवन देवरी में श्रवण कुमार की पाषाण प्रतिमा स्थापित है। 1222 ई. में डबरापरा को देवरी नामकरण किया गया था । डबरापरा में निषाद निवासी को स्वप्न में श्रवण कुमार की प्रतिमा गांव के निकट बहने वाली खारुन नदी के दहरे में से निकाल कर गांव में स्थापित किये जाने की बात कही जाती थी । निषादों ने श्रवणकुमार की प्रतिमा के संबंध में जानकारी प्राप्त करने के बाद निषादों एवं ग्रामीणों द्वारा खारुन नदी पर जाल फेंकते गांव के लोग हतप्रभ रह गये जब जाल खींचने पर ना केवल श्रवण कुमार की पाशाण प्रतिमा के साथ पाषाण प्रतिमा गणेश , नागदेवता , शिवलिंग , नंदी , हनुमान जी की प्रतिमा निकली थी । ग्रामीणों द्वारा खारुन नदी के किनारे खारुन नदी से प्राप्त पाषाण मूर्तियां श्रवणकुमार , शिवलिंग, नाग ,नंदी एवं हनुमान जी स्थापित किया गया है ।
कैंसर पीडित राधेश्याम ने श्रवणकुमार मंदिर बनाने के लिये अपने परिवार को अपनी मौत से पूर्व ही कहा था कि श्रवण कुमार के मंदिर का निर्माण मेरी मौत के बाद आप लोगों को करना है। परिवार के लोगों नें भी उनको दिया वचन पूरा करते हुए गांव में श्रवन कुमार के मंदिर की स्थापना कर उनकी प्रतिमा स्थापित किया था । खाॅरुन नदी के दहरा का भगवान श्रवण कुमार को समर्पित गाँव सरवन देवरी में प्रतिवर्ष माघ शुक्ल पुर्णिमा के दिन खारुन नदी का दहरे से श्रवण कुमार की प्रतिमा निकाली गई थी । महिलाएं श्रवण कुमार पूजा करतीं और श्रवण कुमार कि तरह माता -पिता की सेवा करने वाला पुत्र उनकी कोख से जन्म लेने की मन्नते मानती है । त्रेतायुग में ब्रह्मा जी द्वारा शापित ऋषि शांतनु की पत्नी ज्ञानवती का पुत्र श्रवण कुमार का जन्म छत्तीसगढ़ राज्य के बुजुर्ग जिले का बटिया गढ़ तहसील के अंतर्गत करवाना में हुआ था । शास्त्रों के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की बहन रूपवती एवं यज्ञदत्त का पुत्र श्रवण था। यगदत्त ज्ञानवान और भगवान विष्णु एवं ब्रह्मा जी का भक्त थे।
ब्रह्मा जी के शापित होने से अंधा होने के कारण यगदत्त एवं पत्नी चंद्रकला को अंधक एवं शांतनु तथा पत्नी को ज्ञानवती ,ज्ञानमती ,ज्ञानवन्ति ,ज्ञानवाणी अंधी हो गयी थी । यगदत्त के पुत्रों में वंशीलाल ,राजू ,महेंद्र ,जगपाल एवं श्रवणकुमार एवं पुत्री शांता थी । शांतनु की भर्या ज्ञानवती के पुत्र श्रवण कुमार अपने अंधे माता पिता को कावर में बैठा कर तीर्थ भ्रमण कार्य कर रहे थे । श्रवणकुमार का ससुराल उत्तरप्रदेश के मेरठ स्थित मयराष्ट्र में था । रामायण के अनुसार श्रवण कुमार ने अपने माता पिता को प्यास बुझाने के लिए नदी में जल भरने के दौरान अयोधया के राजा दशरथ द्वारा शब्दभेदी बाण चला कर हत्या कर दी ग्सई थी । जब श्रवणकुमार के अंधे माता पिता को यह ज्ञात हुआ कि मेरा पुत्र दशरथ द्वारा मारा गया है । अंधे माता पिता द्वारा अयोध्या के राजा दशरथ को शसप दिया कि जिस तरह मैं अपने पुत्र श्रवण के वियोग में अपना प्राण त्याग करता हु उसी तरह है दशरथ तुम्हे अपने पुत्र के वियोग में तुम्हारी मृत्यु होगी । फलत: भगवान राम के वन गमन के दौरान राजा दशरथ ने अपने पुत्र राम के वियोग में अपने प्राण त्याग किए थे । श्रवण के चार भाइयो द्वारा उत्तराखंड के पलवल का फुलवारी से अपने माता रूपवती एवं पिता चंद्रपाल को काँवर में बैठाकर हरिद्वार का भ्रमण कराया गया था । छत्तीसगढ़ का मातृ पितृ भक्त सरवन का स्थल सरवन देवड़ी है ।