साहित्य लहर

बाल कविता : स्वप्न बनाम कर्म

राज शेखर भट्ट

गधेराम अकेले थे, नींद की बाहों में चले गये।
सपनों ही सपनों में उनसे, बेहेद पकौड़े तले गये।

सपने देखते-देखते वो, जंगल में इक दिन पहुंच गये।
अगल-बगल भालू खड़े हैं, जंगल के राजा बन गए।

शेर दूसरे जंगल का राजा, उसको जीतना बाकी था।
गधे ने सोचा बस युद्ध का, निर्णय लेना काफी था।

भालू-गैंडा गधे की सेना, बाघ और चीता शेर के संग।
खरगोश गधे का गुप्तचर तो सियार ने दिखाये शेर को रंग।

हाथी बलशाली भी गधे का, बाज शेर के साथ था।
जंगली सुंवर भी शेर के साथ, आधों पर गधे का हाथ था।

गधे ने पूरी सेना भेजी, स्वयं युद्ध करने न गया।
गद्दी पर बैठा, खाकर-पीकर, गहरी नींद में सो गया।

पीठ पे डंडा जब पड़ा, तब थी उसकी नींद खुली।
पिर से उसकी पीठ पर, बोझे की ही थैली मिली।

नींद खुली और सीख मिली, अब स्वप्न नहीं देखूंगा मैं।
स्वप्न-कल्पना में नहीं सत्यता, बस कर्म ही ‘राज’ करूंगा मैं।

Written Date : 05.04.2014©®

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