क्या बिहार का अति पिछडा नेतृत्व विहीन हैं : सतीश राणा

क्या बिहार का अति पिछडा नेतृत्व विहीन हैं : सतीश राणा, सदियों से शोषक जातियां और पिछड़ी जातियाँ अपने ही अति पिछड़े समुदाय के हित को नकारकर अपने स्वार्थ सत्ता सुख भोगने के लिए अति पिछड़ा दलित ‘बहुसंख्य’आबादी पर दमन तथा तमाम सुबिधाओं से बंचित रखती हैं।
देश के संविधान की धारा 15 (4) और 16 (4) के अनुसार पिछड़ी जातियों में से केवल उन जातियों को आरक्षण दिया जा सकता है जो (1) सामाजिक और शैक्षिक तौर पर पिछड़ी हैं और (2) उनका सरकारी सेवाओं में अपर्याप्त प्रतिनिधित्व है. पिछड़ी जातियों को पहले ही पिछड़े वर्ग के 27% आरक्षण के अंतर्गत आरक्षण मिला हुआ है।
यह बात अलग है कि वास्तव में यह उन्हें नहीं मिल पा रहा है क्यों कि पिछड़ी जातियों में भी अगली पंक्तिया के पिछड़ी जातियाँ, अति पिछड़े के मिले हक अधिकार को को हजम कर जाते हैं. इसलिए पिछड़े वर्ग के अंर्तगत आनेवाली अति पिछड़ी जातियों को उनका हक़ दिलाने के उद्देश्य से बिहार में कर्पूरी ठाकुर जी ने इसे पिछड़ी जातियों के अति पिछडो पर दमन को देखते हूए आबादी के अनुसार उन्हे पिछड़ी जातियों तथा अति पिछड़ी जातियों के बीच अनुपात में बाँट दिया था. .आज अति पिछड़ा वर्ग कराह रहा है जहाँ ज़रा भी अतिपिछडो के पास सम्बेदना है।
वहाँ अति पिछडा वर्ग कराह रहा हैं आज तथाकथित पिछड़े समर्थक नेता राजनितिज्ञों ने अति पिछड़े को जितना धोखा दिया है उतना तो सवर्ण भी न देता , न दिया हैं बिहार में लम्बे संघर्षो से प्राप्त अति पिछड़ों के हक़ को ये नितिश+लालू सरकार केवल कागजो पर ही आरक्षण दी है, यह सवर्ण मानसिकता नहीं तो क्या है? दलित -आदिवासी -पसमांदा और समस्त अतिपिछडी को ठगने का धंधा नितिश लालू के लोग सत्ता सुख मे कभी नही छोड़ेगे ऐसे मे सभी लोग मिलजुल कर आवादी के अनुपात मे हिस्सेदारी के लिए लड़ाई को नही लड़े तो आने वाले दिनों में और दूर्गती होनेवाली हैं क्योकि सभी सवर्ण तथा पिछडे वर्गो के अगली पक्ती की जातियां आपस मे गठजोड कर ली हैं।
ये सत्ता में बैठे चोरों और अपराधियों के शिकंजे में ये जकडे रहना पसंद करते हैं,लेकिन दलित अति पिछड़े के नेताओ को सत्ता में क्यों नहीं आने देना चाहते.? सदियों से शोषक जातियां और पिछड़े बर्ग के अगली पंक्ति के लोग भी अपने समुदाय के हित के लिए अति पिछड़े समाज को नकारकर,अति पिछड़े को जिनकी ‘बहुसंख्य’आबादी है उनको तमाम सुबिधाओं से बंचित रखते हैं। जिसका उद्धरण हमे पिछले बिहार विधान सभा चुनाव में तथा कथित सामाजिक न्याय ,और विकास के साथ लालू + नितिश की सुशासन बाबू की सरकार ने अति पिछड़ों को टिकट नही देने वालो से प्रश्न है।
“हमें आप से अति पिछड़ों के लिए भीख नही चाहिए, देना है तो हमारा संवैधानिक हक-अधिकार, भेदभाव रहित न्याय व्यवस्था और दलित-आदिवासी-पसमांदा और समस्त अति पिछड़ी जातियों को जीवन के सभी क्षेत्रों में आबादी के हिसाब से हिस्सेदारी दे दो। हम अपने भोजन बस्त्र, घर और लैप-टॉप का इंतजाम खुद कर लेंगे।” दलित-आदिवासी-पसमांदा और समस्त अति पिछड़ी जातियों के लिये आरक्षण की लड़ाई कोई नौकरी लेने और पैसा कमाने की लड़ाई नहीं है बल्कि समाज और जीवन के सभी क्षेत्रों में न्याय-भागीदारी-बराबरी स्वाभिमान और सम्मान की लड़ाई है। सदियों से शोषक जातियां और पिछड़ी जातियाँ अपने ही अति पिछड़े समुदाय के हित को नकारकर अपने स्वार्थ सत्ता सुख भोगने के लिए अति पिछड़ा दलित ‘बहुसंख्य’आबादी पर दमन तथा तमाम सुबिधाओं से बंचित रखती हैं।
बिहार विधान सभा चुनाव में राजद सुप्रीमो लालू (आरजेडी)और नितिश जद(यू) ने अति पिछड़ों को राजनीति में हाशिये पर डालने की कोशिश की रही है आज बिहार की राजनैतिक परिदृश्य में अति पिछड़ी जातियों का राजनैतिक शासन काल, बेहद कमज़ोर लचर व अविश्वसनीय दौर कहा जायेगा। आज समाजिक न्याय ,भागीदारी और बराबरी की लड़ाई को बौद्धिक,और बैचारिक स्तर पर ले जाकर अगले बिहार बिधान सभा चुनाव में सामाजिक – राजनैतिक संघर्ष की एक नई इबारत रचने के लिए सतत प्रयत्नशील रहने की जरूरत है ताकि लोकतंत्र में अति पिछड़ी जातियों का आस्तित्व बचाया जा सके!
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