
सुनील कुमार माथुर
साहित्य सेवा और लेखन एक श्रेष्ठ कार्य हैं जो समाज को एक नई दशा व दिशा प्रदान करता हैं । श्रेष्ठ साहित्य के सृजन से ही समाज में एक जाग्रति का माहौल बनता हैं । इसलिए साहित्यकार को समाज का सजग प्रहरी कहा जाता हैं जो दिन – रात समाज के हित की बात ही सोचता रहता हैं उसकी साधना सच्ची साधना होती हैं जिसे आज के माहौल में अच्छी तरह से समझना होगा ।
साहित्यकार थ्दारा लिखित गीत , कविता व चित्रकार ध्दारा मिट्टी पर बनाई पेंटिंग , गीत , कविता को तो हम मिटा सकते हैं लेकिन दिल से लिखे गीत , कविता व चित्र को आसानी से नहीं मिटाया जा सकता हैं । साहित्य की साधना तो एक कलमकार ही कर सकता हैं चूंकि एक श्रेष्ठ साहित्यकार हृदय की गहराई तक जाकर चिंतन – मनन करता है और उसका चिंतन – मनन श्रेष्ठ होता हैं क्योकि वह सदैव श्रेष्ठ सोचता हैं श्रेष्ठ बोलता है और श्रेष्ठ ही लिखता हैं
जो साहित्यकार समाज में जैसा देखता हैं वैसा ही लिखता हैं वही असली और श्रेष्ठ साहित्यकार कहलाता है चूंकि वह शब्दों को पिरोकर एक माला बनाता हैं और यह माला ऐसे शब्द रूपी फूलों की होती हैं कि उस साहित्य को पढने से कोई भी नकार नहीं सकता हैं । चूंकि उसमें सत्य कूट – कूट कर भरा होता हैं । वही दूसरी ओर वह सत्य को भी उजागर करता हैं ।
वह सत्य ऐसा सत्य होता हैं कि जिसे हम कटु सत्य कह सकते हैं । सत्य घटना को किसी गीत , कहानी , नाटक , कविता व लेख के रूप में प्रस्तुत करने के लिए रचनाधर्मी को अथक प्रयास करना पडता हैं । शब्दों की कडी को कडी से मिलाना पडता हैं तब कहीं जाकर उसकी बात समाज में जनता के गले उतरती है ।
साहित्य की साधना करना हर किसी के बस की बात नहीं है चूंकि श्रेष्ठ साहित्य का लेखन करने के लिए पहले तपना पडता हैं । गंभीर चिन्तन मनन करना पडता हैं तब कहीं जाकर एक श्रेष्ठ रचना का लेखन कार्य संपन्न हो पाता हैं ।इसलिए साहित्यकार को सदैव सकारात्मक सोच रखनी पडती हैं ।
आज साहित्य जगत में जो निराशा का भाव देखने को मिल रहा हैं उसका मूल कारण यही है कि आज अनेक पत्र – पत्रिकाओं के कार्यालयों में संपादकीय विभाग का नितान्त अभाव नजर आ रहा है ऐसे में वहां साहित्य संपादक की कल्पना करना भी बेईमानी होगा ।
वही दूसरी ओर आज साहित्यकारों को अपनी पुस्तकें प्रकाशित कराने के लिए अकादमी की ओर से समय पर पर्याप्त बजट नहीं मिलता हैं और न ही कोई ऐसा भामाशाह आगे आकर साहित्यकारों को किसी तरह की प्रोत्साहन राशि उपलब्ध करा पा रहा हैं और न ही सरकार इनकी सुध ले रही हैं ।
आज दुःख इस बात का हैं कि समाज में कुछ छपाक के रोगी पैदा हो गये हैं जिन्हें भले ही लिखना ना आता हो लेकिन वे पत्र पत्रिकाओ के कार्यालयों के चक्कर लगाकर वहां येन – केन – प्रकारेण भेंट पूजा कर अपनी रचनाएं प्रकाशित करा रहें है वहीं दूसरी ओर संपादक – प्रकाशक बेखबर बैठे हैं । कई पत्र – पत्रिकाओं के संपादक व प्रकाशक लेखकों की रचनायें तभी प्रकाशित करने की बात करते हैं जब आप उनकों दो – तीन साल का वार्षिक शुल्क भेज कर उनके सदस्य बनें ।
हां चंद पत्र – पत्रिकाओं के संपादक व प्रकाशक इसके अपवाद हो सकते हैं लेकिन सत्य से नकारा नहीं जा सकता चूंकि सत्य बडा ही कटु हैं । यही वजह है कि आज अनेक पत्र पत्रिकाओ के पाठक टूट गयें है और अनेक पत्र पत्रिकाओ का या तो प्रकाशन बंद हो गया है या फिर वे बंद होने के कगार पर हैं ।
आज कुछ समाचार पत्रों ने अपने आपकों राष्ट्रीय स्तर का पत्र कहलाने की हौड में अनेक राज्यों से अपना प्रकाशन बता रहें है जिसके मूल में विज्ञापन बढोरना ही मूल ध्येय हैं जो छोटे व मंझोले समाचार पत्र -पत्रिकाओं का गला काटना ही कहा जा सकता हैं ।
जब ऐसे पत्र कोई परिशिष्ट या विशेषांक प्रकाशित करते हैं तो पाठकों तक वे परिशिष्ट व विशेषांक पहुंच भी नहीं पाते हैं चूंकि हाॅकर उन्हें पाठकों को वितरित न कर रद्दी में बेच रहे हैं और शिकायत करने पर जवाब मिलता हैं कि हाॅकर इतने पृष्ठों का अखबार कैसे लेकर बांट सकता हैं ।
कोई इन प्रकाशकों से पूछे कि फिर आपने क्यों ये परिशिष्ट व विशेषांक निकाला । पूरा पैसा चाहिए तो पूरी सामग्री भी देनी होगी । यह कैसी विडम्बना है जब प्रकाशन कार्यालय से ऐसा जवाब दिया जाता है यही वजह है कि आज पाठकों को पूरी पठनीय सामग्री नहीं मिल रही हैं और साहित्य की साधना रसातल की ओर जा रही हैं जो कि एक चिंता की बात हैं ।
अतः संपादक मंडल न केवल साहित्यकारों को मान सम्मान ही दे अपितु उन्हें उचित पारिश्रमिक भी दे और प्रकाशित रचना की एक प्रति निशुल्क डाक से उन्हेंप्रेषित की जायें और उनका मनोबल बढायें ताकि श्रेष्ठ साहित्य लेखन की साधना निर्बाध रूप से जारी रहें ।
¤ प्रकाशन परिचय ¤
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From »सुनील कुमार माथुरलेखक एवं कविAddress »33, वर्धमान नगर, शोभावतो की ढाणी, खेमे का कुआ, पालरोड, जोधपुर (राजस्थान)Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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