भगवान राम और गुप्तार घाट
भगवान राम और गुप्तार घाट… सरयू नदी की प्रमुख सहायक नदी राप्ती उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के बरहज स्थान पर मिलती है। राप्ती नदी के तट पर गोरखपुर इसी राप्ती नदी के तट पर स्थित। राप्ती तंत्र की आमी, जाह्नवी इत्यादि नदियाँ का जल सरयू में जाता है। #सत्येन्द्र कुमार पाठक
वेदों, पुराणों तथा विभिन्न ग्रंथों में सरयू नदी, अयोध्या एवं गुप्तार घाट का उल्लेख मिलता है। भारत के उत्तरी भाग में प्रवाहित होने वाली सरयू नदी का उद्गम स्थल उत्तराखण्ड के बागेश्वर कुमाऊँ ज़िला का बागेश्वर के 4150 मीटर व 13620 फिट की ऊँचाई पर अवस्थित नंदीमुख पर्वत श्रृंखला सरमूल है। सरयू नदी के उद्गम स्थल के बाद शारदा नदी में विलय होने के बाद काली नदी और उत्तर प्रदेश राज्य से गुज़रती हुई शारदा नदी फिर घाघरा नदी में विलय होने के बाद निचले भाग को फिर से सरयू नदी के नाम से ख्याति है। सरयू नदी को सरयू नदी, शारदा नदी और घाघरा नदी कहा जाता है। सरयू नदी के किनारे अयोध्या तीर्थ नगर बसा हुआ है।
सरयू नदी बिहार राज्य में प्रवेश कर छपरा का गंगा नदी में विलय होती है। उत्तराखण्ड, उत्तरप्रदेश के आजमगढ़, सीतापुर, बाराबंकी,बहरामघाट बहराइच गोंडा,अयोध्या,टांडा,राजेसुल्तानपुर, दोहरी घाट और बिहार के छपरा निर्देशांक 25°45′18″N 84°39′11″E / 25.755°N 84.653°E पर प्रवाहित होने वाली सरयू नदी की लंबाई 350 किमी व 220 मिल में विकसित सरयू नदी को सरयू, काली, शारदा, घाघरा और गंगा नदी कहा गया है। सरयू नदी की प्रमुख सहायक नदी राप्ती उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के बरहज स्थान पर मिलती है। राप्ती नदी के तट पर गोरखपुर इसी राप्ती नदी के तट पर स्थित। राप्ती तंत्र की आमी, जाह्नवी इत्यादि नदियाँ का जल सरयू में जाता है।
बाराबंकी, बहरामघाट, बहराइच, सीतापुर, गोंडा, फैजाबाद, अयोध्या, टान्डा, राजेसुल्तानपुर, दोहरीघाट, बलिया आदि शहर तट पर स्थित हैं। सरयू नदी के ऊपरी हिस्से में काली नदी के नाम से उत्तराखंड में बहती है। सरयू नदी मैदान में उतरने के पश्चात् करनाली या घाघरा नदी आकर मिलने के बाद सरयू हो जाता है। उत्तर प्रदेश के पश्चिमी क्षेत्रों में सरयू को शारदा, घाघरा, गोगरा, देविका, रामप्रिया इत्यादि नाम हैं। सरयू नदी के किनारे रहने वाले ब्राह्मण कोसरयुगपारिय व सरयुपारीण ब्राह्मण कहा गया है। ऋग्वेद 4. 13. 18 के अनुसार में देवराज इंद्र की युद्ध स्थल सरयू के तट अरिकावती उल्लेख है। रामायण के अनुसार सरयू के किनारे अयोध्या है।
अयोध्या का राजा दशरथ की राजधानी और राम की जन्भूमि जाता है। वाल्मीकि रामायण के बालकांड का प्रसंगों में राजर्षि विश्वामित्र ऋषि के साथ शिक्षा के लिये जाते हुए श्रीराम द्वारा सरयू नदी द्वारा अयोध्या से इसके गंगा के संगम तक नाव से यात्रा करते हुए जाने का उल्लेख है। कालिदास के महाकाव्य रघुवंशम् एवं रामचरित मानस में तुलसीदास ने सरयू नदी का गुणगान किया है। बौद्ध ग्रंथों में सरयू नदी को सरभ, कनिंघम ने मानचित्र पर मेगस्थनीज द्वारा वर्णित सोलोमत्तिस नदी, टालेमी द्वारा वर्णित सरोबेसनदी कहा है। सनातन धर्म ग्रंथों के अनुसार,इक्ष्वाकु वंशीय राजा भगीरथ ने सरयू व शारदा नदी सरयू नदी में गंगा का संगम कराया था।
सरयू नदी भगवान विष्णु के नेत्रों से प्रकट हुई सरयू नदी है। दैत्यराज शंखासुर ने वेदों को चुराकर समुद्र में छिपा दिया था।. वेदों की रक्षा करने के लिए भगवान विष्णु को मत्स्य रूप धारण करना पड़ा था। वेदों को वापस लाकर भगवान विष्णु की खुशी आंख से एक आंसू टपक गया था। ब्रह्माजी ने भगवान विष्णु के खुशी की आँसू को एक मानसरोवर में डाल दिया था। भगवान विष्णु की आसूँ सरोवर को भगवान सूर्य की भार्या माता संज्ञा के पुत्र एवं वैवश्वस्त मन्वंतर के संस्थापक वैवस्वत मने ने बाण के प्रहार से धरती के बाहर निकालने से सरयू नदी हुई है। भगवान विष्णु की मानस पुत्री सरयू नदी को धरती पर ऋषि वशिष्ट लेकर आए थे।
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भगवान राम द्वारा सरयू नदी के गुप्तार घाट पर जल समाधि लेने पर भोलेनाथ नाराज हो गए थे। भगवान राम की सरयू में जल समाधि लेने के कारण लिए भगवान शिव ने सरयू नदी को दोषी माना कर सरयू नदी को श्राप दे दिया कि तुम्हारा जल किसी भी मंदिर में चढ़ाने के काम नहीं आएगा और किसी पूजा में तुम्हारे जल का उपयोग नहीं किया जाएगा।. सरयू ने भगवान शिव से अपना दोष मुक्ति का उपाय के लिए भगवान शिव से प्रार्थना की थी। भगवान शिव ने कहा कि श्राप तो खत्म नहीं हो सकता परंतु तुम्हारे जल से स्नान करेगा, वह पापों से मुक्त हो जाएगा। कौशल की राजधानी अयोध्या 12 योजन लंबी एवं 3 योजन चौड़ी थी।
अयोध्या के पूरब आजमगढ़,पश्चिम में बाराबंकी,उत्तर में सरयू नदी और दक्षिण में विसुई नदी प्रवाहित है। अयोध्या को भगवान विष्णु को मस्तक कहा गया है। अयोधया क्षेत्र का सरयू नदी के तट पर 51 घाटों में राम घाट, उर्मिला घाट,लक्ष्मण घाट, गोप्रतार व गुप्तार घाट, यमस्थला व जमधारा घाट, चक्रतीर्थ घाट,प्रह्लाद घाट,सुमित्रा घाट, कौशल्या घाट,कैकई घाट,राजघाट,ऋणमोचन घाट,स्वर्गद्वार घाट,पापमोचन घाट, गोला घाट ,विल्वहरिघाट,चन्द्रहरि घाट,नागेश्वरनाथ घाट,वासुदेव घाट,जानकी घाट, दशरथ घाट, भरत घाट, शत्रुघ्न घाट एवं राम की पैड़ी है। अयोध्या का क्षेत्र 12 योजन लंबी एवं 03 योजन चौड़ी में फैली थी।
नागेश्वरनाथ घाट – त्रेतायुगीन सरयू नदी के तट एवं राम की पैड़ी किनारे अयोध्या के राजा एवं भगवा राम की भार्या माता सीता के पुत्र कुश एवं नागराज कुमुद की पुत्री कुमुदनी द्वारा वैवश्वत मनु के पुत्र इक्ष्वाकु ने भगवान शिव का शिवलिंग स्थापित किया गया था को नागेश्वरनाथ मन्दिर निर्माण कर मंदिर के गर्भगृह में स्थापित किया गया था। शिवपुराण, लिंगपुराण, स्कन्द पुराण विभिन्न संहिताओं के अनुसार त्रेतायुग में कौशांबी का राजा कुश सरयू नदी में नौका विहार करने के क्रम में राजा कुश का बाजूबंद सरयू नदी में गिर गया था। कुश का बाजूबंद नागराज कुमुद की पुत्री कुमुदनी को प्राप्त हो गयी थी।
कुश अपने बाजूबंद कंगन प्रप्ति हेतु नागराज कुमुद से भयंकर युद्ध अयोध्या स्थित सरयू नदी के तट पर हुआ था। अयोध्या का राजा कुश और नागराज कुमुद का भयंकर युद्ध को रोकने के लिए भगवान शिव उपस्थित हुए। युद्ध की समाप्ति के पश्चात भगवान शिव द्वारा अयोध्या का राजा कुश का विवाह नागराज कुमुद की पुत्री कुमुदनी के साथ कराया गया। भगवान शिव नागेश्वर के रूप में विराजमान हो गए थे। अयोध्या का राजा और भगवान शिवभक्त नागराज कुमुद की पुत्री कुमुदनी द्वारा नागेश्वरनाथ मंदिर का निर्माण किया गया था। ब्रिटिश साम्राज्य। का इतिहासकार विसेन्टस्मिथ के अनुसार नागेश्वर मंदिर का पुनर्निर्माण विक्रमादित्य द्वारा कराया गया था।
नागेश्वरनाथ मंदिर पर 27 बार आक्रमण हुए परंतु मंदिर को किसी प्रकार की क्षति हुई हुई थी। नागेश्वरनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार नबाब सफदरजंग के मंत्री नवल राय द्वारा 1750 ई. में कराया गया है। अयोध्या क्षेत्र में में 300 मंदिर है। हैमिल्टन एवं कनिग्घम ने नागेश्वरनाथ मंदिर को पवित्र एवं इतिहासवेत्ता लोचन ने नागेश्वरनाथ ज्योतिर्लिंग कहा है। राम की पैड़ी का पुनर्निर्माण 1985 ई. में किया गया है। कार्तिक कृष्ण अमावश्या सन 2019 ई. में राम की पैड़ी पर 450000 दीप प्रज्वलित कर भगवान राम को समर्पित किए गए थे। गुप्तार घाट – अयोध्या से 10 किमी की दूरी पर सरयू नदी का स्थल भगवान राम की जल समाधि स्थित है।
स्कन्द पुराण के अनुसार अयोध्या में भगवान राम ने त्रेतायुग में 11000 वर्षों के बाद अयोध्या को आठ भागों में विभक्त कर लक्ष्मण, भरत शत्रुघ्न और अपने पुत्र लव और कुश को राज्य देने के बाद भगवान सूर्य पुत्र यमराज के अनुनय पर एवं सरयू नदी के निर्धारित तट पर भगवान राम जलसमाधि लेकर वैकुंठ चले गए थे। भगवान राम के साथ शेषावतार लक्षमण, धर्मावतार भरत और शत्रुघ्न अपने स्थान पर चले गए थे। इतिहासकारों ने भगवान राम की जलसमाधि 5000 ई. पू. कहा है।
भगवान राम की जल समाधि स्थल को गुप्त हरि घाट, गौ प्रतारण घाट, गुप्तार घाट कहा गया है। गुप्तार घाट अवस्थित राम मंदिर के गर्भगृह में अस्त्र,शस्त्र लिए विना भगवान राम की मूर्ति, लक्ष्मण, माता सीता की मूर्ति स्थापित है। गुप्तार घाट के समीप भगवान राम के चरण चिह्न, नरसिंह मंदिर, परशुराम मंदिर चक्र हरि मंदिर के गर्भगृह में भगवान राम का चरण चिह्न है। अयोध्या का राजा दर्शन सिंह ने 19 शताब्दी में राम मंदिर का निर्माण कराया था। अयोध्या का नवाब शुजा – उद – दौला ने गुप्तार घाट के समीप श्री राम मंदिर के समीप किले का निर्माण कराया था।