वर्तमान सदी में गुरु की प्रासंगिकता
वर्तमान सदी में गुरु की प्रासंगिकता… डॉ. पंचोला ने कहा कि भारत के स्वर्णिम इतिहास में गुरु-शिष्य परंपरा की एक गौरवशाली श्रृंखला रही है। प्राचीन काल से ही गुरु सिर्फ ज्ञान का स्रोत नहीं था, बल्कि वह शिष्य का संरक्षक भी हुआ करता था। “गीता” में भगवान श्री कृष्ण ने गुरु-शिष्य परंपरा को ‘प्राप्तमयोग’ के रूप में बताया है। #अंकित तिवारी
डोईवाला। वर्तमान सदी में जहां तकनीकी विकास ने शिक्षा के क्षेत्र में बड़े बदलाव लाए हैं, वहीं गुरु की प्रासंगिकता और महत्व आज भी अडिग है। यह विचार शहीद दुर्गा मल्ल राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, डोईवाला की राजनीति विभाग की विभागाध्यक्ष, डॉ. राखी पंचोला ने शिक्षक दिवस के अवसर पर व्यक्त किए।
डॉ. पंचोला ने कहा कि भारत के स्वर्णिम इतिहास में गुरु-शिष्य परंपरा की एक गौरवशाली श्रृंखला रही है। प्राचीन काल से ही गुरु सिर्फ ज्ञान का स्रोत नहीं था, बल्कि वह शिष्य का संरक्षक भी हुआ करता था। “गीता” में भगवान श्री कृष्ण ने गुरु-शिष्य परंपरा को ‘प्राप्तमयोग’ के रूप में बताया है। वैदिक युग में शिक्षा का अर्थ व्यक्ति को सभ्य व उन्नत बनाना था, जो आजीवन चलने वाली प्रक्रिया है।
डॉ. पंचोला ने बताया कि वर्तमान समय में जहां कृत्रिम मेधा और आभासी गुरुओं का चलन बढ़ा है, वहीं यह महत्वपूर्ण है कि हम गुरु की वास्तविक भूमिका को न भूलें। उन्होंने कहा, “कृत्रिम मेधा और आभासी गुरुओं से हमें उपलब्ध जानकारी मिल सकती है, परंतु नए सृजनात्मक विचार और शुद्ध आचार-विचार एक आदर्श गुरु ही प्रदान कर सकता है।”
उन्होंने तकनीकी युग में गुरु की भूमिका को स्पष्ट करते हुए कहा कि गुरु और ज्ञान एक दूसरे के पूरक हैं। तकनीक हमें ज्ञान दे सकती है, परंतु वह हमें सही दिशा दिखाने और जीवन के आदर्श स्थापित करने में गुरु की जगह नहीं ले सकती। शिक्षक दिवस के अवसर पर डॉ. पंचोला ने सभी से अपील की कि वे अपने गुरुओं का सम्मान करें, जिन्होंने उन्हें जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझने और उन्हें अनुकूल बनाने में सहायता की है।
शिक्षक युगनिर्माता के रूप में समाज के मार्गदर्शक : डॉ मनीषा अग्रवाल