महिला मुखिया क्यों नहीं…?
ओम प्रकाश उनियाल
उत्तराखंड विधानसभा चुनाव निकट ही हैं। सभी राजनीतिक दल अपनी पूरी ताकत चुनाव प्रचार में झोंक रहे हैं। ताकि राजपाट हासिल कर सत्ता-सुख भोगा जा सके। अब ऐसा समय आ गया है कि हरेक को सत्ता से भारी मोह होने लगा है। खासतौर उत्तराखंड राज्य में तो सत्ता की लोलुपता सबको लुभाती आ रही है। उत्तराखंड कामधेनु गाय के समान है।
जो कि सत्तासीनों की हर मनोकामना पूरी करती आ रही है। जब से राज्य बना तब से जुमलेबाजियों और कोरे कागजों पर खाका खींचकर इस गाय को दुहा जाता रहा है। यही कारण है कि यहां राजनीति करने वालों की भरमार है। और हर कोई इस गाय को दोहना चाहता है। वैसे भी देवभूमि के नाम से जाना जाता है इस राज्य को।
यहां के वासी भोले-भाले और ईमानदार हैं। लेकिन राजनीति हर किसी के सिर पर सवार है। पहाड़ का पुरुष तो चुनाव में बढ़-चढ़कर भागीदारी करता आया है लेकिन अब महिलाएं भी हर चुनाव में अपना दम ठोकती हैं। जब से अलग राज्य बना तब से किसी भी सत्ताधारी दल ने महिला को राज्य की बागडोर सौंपने की कोशिश ही नहीं की।
आखिर पहाड़ की महिलाओं को कमजोर क्यों समझा जाता है? हालांकि, राजनीतिक दलों के पास इसका कोई जवाब नहीं। राज्य में भाजपा और कांग्रेस की पुरुष प्रधान राजनीति जमकर चली आ रही है।
जबकि भाजपा और कांग्रेस में सुयोग्य, दमखम और जुझारु नेत्रियों की कमी नहीं है। एक बार ये दल किसी महिला नेत्री को राज्य की कमान सौंपकर तो देखें, राज्य का ढांचा ही बदल जाएगा। मगर पुरुष प्रधान राजनीतिज्ञ ऐसा होने ही नहीं देंगे।
¤ प्रकाशन परिचय ¤
From »ओम प्रकाश उनियाललेखक एवं स्वतंत्र पत्रकारAddress »कारगी ग्रांट, देहरादून (उत्तराखण्ड)Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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