आपके विचार

अब पहले जैसे लोग कहां रहे

सुनील कुमार माथुर

प्रायः यह सुनने को मिलता है कि अब पहलें जैसे लोग कहां रहें है । अब पहलें जैसा प्यार व स्नेह कहां रहा हैं । अब पहलें जैसे संबंध कहां रहें । अब पहले जैसे संस्कार कहां रहें । आज कहने को भले ही हम आपने आपकों एक सभ्य समाज का आदर्श नागरिक कहते हैं लेकिन आज हमारे सभी संबंध , रिशते बनावटी नजर आ रहें है । दोस्ती , रिश्ते और संबंधो को हम जबरन ढो रहें है । अगर ऐसा न करें तो समाज क्या कहेगा का भय जो हमें सता रहा हैं ।

आज हर कोई अपने स्वार्थ में अंधा हैं । एक – दूसरें की पीडा दुःख व बुरे वक्त का मजाक उडाया जा रहा हैं । संबंधों की डोर को जबरन खींच कर चेहरे पर नकली मुस्कान बिखेर रहें है । क्या जमाना आया हैं । पहले प्याऊ पर जब लोग ठंडा पानी पीते थे तो पानी पिलाने वाले को चवन्नी , अठन्नी दिया करते थे और पानी पीते समय जो जल हमारे हाथ से नीचे गिरता था वह पानी की कुंडी में गिरता था जिसे पीकर जानवर अपनी प्यास बुझाते थें ।

लोग गाय – कुत्तों को रोटी खिलाते थे लेकिन इस नेक कार्य में तनिक भी लेसमात्र भी दिखावा नहीं होता था । लेकिन आज लोग गायों को लापसी खिलाते हैं और हरा चारा डालते हैं तो साथ में अपना फोटों खिंचवा कर अपना प्रचार-प्रसार करतें है मानों बहुत बडा नेक कार्य किया हो । भूखें को भोजन करायें तो भी सेल्फी लेते हैं । आज हालात यह हैं कि आप किसी से सहायता लेते हैं तो सहायता करने वाला दूसर दस – बीस लोगों को बताते हैं कि हमनें अमुक की सहायता की अन्यथा उस पर अमुक विपदा आ जाती । जब ऐसी बातें सुनते हैं तो हृदय को बडा ही आघात लगता हैं ।

उस वक्त ऐसा लगता हैं कि इससे अच्छा तो यही था कि इनकी मदद न लेकर वह पीडा , दर्द या मुसीबत को झेलना ही बेहतर था । सहायता ली हैं तो अब सारी जिन्दगी इनके अहसान तले दबे रहो । इनकी सुनते रहों चूंकि अब पहलें जैसे लोग कहां रहें । जो सहायता करके , दान – पुण्य करके भी कभी प्रचार-प्रसार नहीं करते थे । प्रचार-प्रसार तो दूर की बात रही वे किसी को इस बात की भनक तक नहीं पडने देते थे कि किसने मदद की । पहलें लोगों में देश भक्ति की भावना थी । उन्हें पद – प्रतिष्ठा, मान व सम्मान की कोई चाह नहीं थी । लेकिन आज लोग देश भक्ति की भावना में नहीं अपितु भ्रष्टाचार की गंगा में डूबकी लगा रहें है ।

पहले लोगों में परोपकार की भावना हुआ करती थी । वे लोग दया , करूणा , ममता व वात्सल्य की भावना से ओत-प्रोत हुआ करते थे लेकिन आज के लोगों में सर्वत्र अंहकार , काम , क्रोध , लोभ , लालच , ईर्ष्या , जलन , नफरत व आलस्य ही नजर आता हैं ऐसे में ऐसे लोग क्या राष्ट्र का भला कर पायेंगे । हां इस कलयुग में आज भी अपवाद स्वरूप ऐसे लोग हैं जो जरूरतमंद लोगों की निस्वार्थ भाव से सेवा कर रहें है लेकिन उनकी संख्या बहुत ही कम हैं जो अंगुलियों पर आसानी से गिनी जा सकती हैं ।

Devbhoomi Samachar

देवभूमि समाचार में इंटरनेट के माध्यम से पत्रकार और लेखकों की लेखनी को समाचार के रूप में जनता के सामने प्रकाशित एवं प्रसारित किया जा रहा है।

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