जब जागो तभी सवेरा
सुनील कुमार माथुर
हमारे देश में एक कहावत है कि जब जागों तभी सवेरा । कहने का तात्पर्य यह है कि अगर आप से कोई गलती है गई हैं तो उसे अब सुधार ले और इस बात का ध्यान रखें कि भविष्य में इस प्रकार की गलती कि पुनरावृत्ति न हो । आज हम देख रहें है कि लोग छोटी – छोटी बातों पर झूठ बोलतें है जो कि उचित नहीं है । हमारी सभ्यता और संस्कृति को तो आज विदेशी लोग भी स्वीकार करते हैं चूंकि यह सभ्यता और संस्कृति नैतिक मूल्यों पर आधारित हैं जिसकी जितनी सरहाना की जायें वह कम हैं ।
लेकिन आज पाश्चात्य संस्कृति को अपना कर हम अपनी ही सभ्यता और संस्कृति व नैतिक मूल्यों को भूलते जा रहें या उनकी अनदेखी करते जा रहें है । यहीं वजह है कि आज देश भर में असंतोष पनप रहा हैं और अपराध बढ रहें है चूंकि हम बच्चों को बचपन में ही झूठ बोलना सीखा रहें है और वह भी छोटी – छोटी बातों पर । यह झूठ ही आगें चलकर अपराध प्रवृत्ति में बदल जाता हैं ।
अब भी वक्त हैं कि हम अपनी गलतियों का प्रायश्चित कर ले और एक नयें जीवन की शुरुआत करें । जब हमारी सोच सकारात्मक होगी तभी समाज व राष्ट्र में बदलाव देखने को मिलेगा । सुधार लाठी के बल पर आने वाला नहीं है अपितु हमें अपने मन – मस्तिष्क में अच्छे विचारों को आने देने के लिए ध्दार खोलने होंगे और बुरे व नकारत्मक विचारों को बाहर से ही अलविदा कहना होगा । जब सभी की सोच सकारात्मक होगी तभी नयें राष्ट्र का नव – निर्माण हो पायेगा.
किसी ज्ञानी ने बहुत ही सुन्दर बात कहीं हैं कि आपके पास एक रूपया है और मेरे पास भी एक रूपया है और हम दोनों रूपये को आपस में बदल ले तो भी दोनों के पास एक – एक रूपया ही होगा । लेकिन हम अपने विचारों का आपस में आदान – प्रदान करें तो दोनों के पास दो – दो विचार हो जायेंगे विचारों के आदान – प्रदान से ही नये समाज की संरचना होती हैं ।
देश आत्म निर्भर बनेगा । निर्भय और भयमुक्त और खुशहाल भारत बनेगा । हर हाथ को काम मिलेगा । इतना ही नहीं सकारात्मक सोच के साथ ही साथ संस्कारवान , चरित्रवान व सभ्य समाज की पहचान बनेगी । वही दूसरी ओर आप सीना ठोक कर समाज व अन्य राष्ट्रों को अपनी प्रतिभा व हुनर दिखा दीजिए कि हम किसी से कम नहीं है । राह भटके लोगों को सही मार्ग दिखा दीजिए फिर देखिये कि उसका जीवन किस तरह खरे सोने की तरह से निखरता हैं ।
आपने अपने जीवन में इस बात का अनुभव किया होगा कि घर की बहू दुःख व पीडा एवं संकट की घडी में घर – परिवार को निकालती है तो सास कहती हैं कि मैं अपनी बहू को सोने से तोलू तो भी वह कम हैं । कोई व्यक्ति किसी रोगी की येन केन प्रकारेण मदद कर उसे मौत के मुंह में जाने से बचाता हैं तब भी रोगी के परिजन कई बार मदद करने वाले के प्रति आभार व्यक्त करते हुए ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करतें हैं चूंकि जीवन अनमोल है । जीवन की कद्र करें ।
आज शिक्षा के क्षेत्र में आई क्रांति का ही यह परिणाम है कि लोग अब मृत्यु के बाद देहदान करने लगें हैं और उनकी यह सोच हैं कि मृत्यु के बाद हमारी देह जलाने के बजाय मेडिकल कॉलेज के विधार्थियों के अध्ययन में काम आयें तो बेहतर हैं चूंकि वे इस देह से ज्ञान अर्जित कर किसी का जीवन बचाने का ही तो कार्य कर रहें है और इस नेक कार्य के लिए हम मरते दम भी किसी के काम आयें तो इससे अच्छी और क्या बात हो सकती है ।
अब आप समझ गयें होंगे कि जब जागों तभी सवेरा है । इस कथन के पीछे कितना बडा भाव व संदेश हैं जो हमें एक आदर्श संस्कार व मार्गदर्शन करता हैं । हमारे बडे बुजुर्ग ज्ञानी थे । उन्होंने हर कहावत की गहराई को समझा और उसे अनुभव किया फिर उसे जीवन में आत्मसात किया ।
हमारे बडे बुजुर्ग व परमात्मा हर हाल में हमारे साथ खडे हैं अतः हमें बिना किसी अपेक्षा के हर सकारात्मक कार्य करने चाहिए और जहां आवश्यकता हो वहां दूसरों की भी मदद करनी चाहिए । समय कभी भी बुरा नहीं होता हैं अपितु बुरी होती हैं हमारी घटिया सोच । किसी भी वस्तु की कद्र करना बुरी बात नहीं है लेकिन उस वस्तु के अधीन अपनी सोच व विवेक को कर देना बुरा हैं । उस वस्तु से इतना भी मोह न हो कि हम अपने अच्छे – बुरे का फर्क भी भूल जायें ।
जब जागों तभी सवेरा है से तात्पर्य यह है कि अपने भीतर ज्ञान का प्रकाश जागृत कीजिए ताकि मन प्रसन्नता से भर जायें ।
¤ प्रकाशन परिचय ¤
From »सुनील कुमार माथुरलेखक एवं कविAddress »33, वर्धमान नगर, शोभावतो की ढाणी, खेमे का कुआ, पालरोड, जोधपुर (राजस्थान)Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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