फीचरसाहित्य लहर

अपने लिये कब

घर की महिलाएँ सारा दिन काम के बोझ में दबी रहीं। अंदर से तो इच्छा हो रही थी कोई ढंग की काम वाली मिल जाय तो लगा लें।

आसिया फ़ारूक़ी

कॅरोना संकट में अच्छे बड़े परिवार की आर्थिक स्थिति संकट में आ पड़ी तो गरीबों की दशा और भी अधिक बिगड़ी हुई थी। जहाँ हर तरफ़ काम धन्धे चौपट हो चले तो मालिको ने कम्पनियों से मज़दूरों को वेतन न देना पड़े इस चक्कर से बाहर निकाल दिया। निजी स्कूलों ने अपने शिक्षकों की संख्या कम कर दी।लोगों ने घरों से कामवालियाँ भी निकाल दीं।

घर की महिलाएँ सारा दिन काम के बोझ में दबी रहीं। अंदर से तो इच्छा हो रही थी कोई ढंग की काम वाली मिल जाय तो लगा लें। यह कॅरोना अब न जाने वाला, यही विचार करते काफ़ी दिनों तक मैडम समीना घर के सारे काम खुद करती रहीं। एक दिन एक बूढ़ी औरत दरवाज़े पर आ बैठी। झुकी कमर, दुबली पतली, चेहरे पर फ़िक्र ऐसा लगता मानो कह रही हो मेरी मदद करो बिटिया। मैडम समीना ने पूछा, “कौन हो तुम ?” वो बूढ़ी बाज़ी बोलीं, “हमें रामश्री भेजी हैं काम के लिये बिटिया।”

मैडम समीना को याद आया। बोली, “हाँ, उससे तो हमने कहा था कि कोई अच्छी सी काम वाली बताना। पर तुम तो काफ़ी कमज़ोर हो। कैसे करोगी?” बाज़ी जवाब देती हैं, “हम कर लेबे बिटिया।'” मैडम समीना उसकी आँखों को पढ़ सकती थीं जो साफ़ बोल रही थीं, “बिटिया मना मत करियो।” मैडम समीना उसको अंदर बुला काम समझाती पर बार-बार यही सोचने लगतीं, “क्या ये बूढ़ी बाज़ी काम कर पायेगी? क्योंकि उनको भी तो स्कूल के लिये जल्दी निकलना होता था।

“बाज़ी कहाँ रहती हो ?” बूढ़ी बाज़ी, “बिटिया काफ़ी दूर है, हमारा घर जमरावां उस पार।” “ओह! वहॉं से कैसे आओगी?” मैडम ने पूछा । आ जाइब बिटिया हमारी आदत है पैदल चलने की।” ..मैडम को बड़ा तरस आया। लो तुम 50 रुपए रखो और काम करके रिक्शा से चली जाना। बूढ़ी बाज़ी अपनी छोटी सी पोटली किनारे रखती और काम शुरू कर देंती।

अगली सुबह आते ही पोटली से एक छोटा सा फोन निकाल कर चार्जिंग में लगती हुई मैडम समीना ने देखा तो बोली बाज़ी तुम्हारे पास फोन है तो नंबर भी दे दो। बूढ़ी बाज़ी को नंबर भी नही पता था। बोली, “जब पैसा होई तब डलवाकर नंबर बेटी से निकला कर देबे।” बूढ़ी बाज़ी दोनों वक़्त काम करने आने लगी पर मैडम समीना को सबसे ज़्यादा तकलीफ़ यह जानकर हुई कि सुबह जो चाय वो उनके घर से पीकर जाती वही पिये सारा दिन काम करती रहतीं और शाम तक घर भी न जा पाती।

घर दूर होने की वजह से बाहर की दुकान के चबूतरे पर बैठकर इंतेज़ार करती और शाम की ड्यूटी करके फिर घर जाती । इतनी मेहनत वो बूढ़ी औरत अपनी जान से करती रही, सारा महीना इसी तरह आती और शाम की शिफ़्ट भी करके घर वापस जाती। मैडम समीना उसको खाना भी दे देती पर वो बूढ़ी बाज़ी ज़ुबान से कभी कुछ न माँगती।

एक दिन माँग कर एक हज़ार रुपये ले गयी ये कहकर कि बिटिया दामाद आये हैं। मैडम समीना “बाज़ी कल ले लेना आज ज़रूरी न हो तो।” बूढ़ी बाज़ी, “नाही बिटिया हमका दई दो, दामाद आवे है। का ख़िलावेंगे घर मे खाये का कुच्छो भी नही, बूढ़ा भी बीमार है।” कुछ दिनों में उनका काम करते-करते एक महीना पूरा हो गया।

बाक़ी के दो हज़ार ले गयी खुशी से और बोलती हुई कुछ इस तरह निकलीं, ”बुढ़वा को दवाई का हो जाई , कल कानपुर भेज देब। काफ़ी दिनों से बीमार पड़े हैं।” “अरे बाज़ी! तुम सारे पैसे दे देगी ये तुम्हारी मेहनत के हैं। तुम अपने पास क्या रखोगी।”…मैडम समीना पीछे से बोली जा रहीं थीं। लेकिन शायद बूढ़ी बाज़ी अपने बूढ़े के ख्यालों में गुम कुछ न सुन पायीं।


¤  प्रकाशन परिचय  ¤

Devbhoomi
From »

आसिया फ़ारूक़ी

शिक्षिका, फतेहपुर (उत्तर प्रदेश)

Publisher »
देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड)

Devbhoomi Samachar

देवभूमि समाचार में इंटरनेट के माध्यम से पत्रकार और लेखकों की लेखनी को समाचार के रूप में जनता के सामने प्रकाशित एवं प्रसारित किया जा रहा है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
Verified by MonsterInsights