होगी सच की ही जीत एक दिन

मो. मंजूर आलम उर्फ नवाब मंजूर
अभी
प्रेस भी तुम्हारे
पत्रकार भी तुम्हारे हैं
छापेख़ाने भी
छापो जो जी चाहे
मुफ्त रक्त हमारे हैं!
जेलर भी तुम्हारे
कैदखाने भी तुम्हारे
जज तुम्हारे दीवारें तुम्हारे हैं
करो कैद!
ये जिस्म तेरे हवाले हैं।
पर
रोशनी हवा तेरे बस में नहीं
वो आते रहेंगे
काल कोठरी में भी!
सीने से मेरे टकराएंगे
टकराकर जाएंगे
निकलेगी उनसे वो चिंगारी
जो बारूद पर भी पड़ेंगे भारी
धरी रह जाएंगी तेरी
सारी तैयारी!
ऐसा होगा इंकलाब
तेरी सारे जुल्मों का तब लेंगे सब हिसाब।
बूंद बूंद पाई पाई वसूले जाएंगे
भागकर बेईमान कहां जाएंगे?
इंसाफ और सिर्फ इंसाफ होगा,
जो ईश्वर की नजर में भी पाक होगा।
मानव का संबंध सिर्फ मानव से होगा,
न कोई हिन्दू न कोई मुसलमान होगा।
बात मान लें
गांठ बांध लें
चंद पैसों की खातिर
ज़मीर न बेचा कर
तू और तेरे बच्चे
हीरे जवाहरात नहीं है खाते?
खाते वही हो
जो मेहनतकश किसान
लहू से सींचकर हैं उगाते!
¤ प्रकाशन परिचय ¤
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From »मो. मंजूर आलम ‘नवाब मंजूरलेखक एवं कविAddress »सलेमपुर, छपरा (बिहार)Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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