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साझा संग्रहों का फलता-फूलता व्यवसाय

साझा संग्रहों का फलता-फूलता व्यवसाय… दो-चार साझा संग्रहों में शुल्क आधारित रचनाएं प्रकाशित कराने के बाद नवोदित रचनाकार अपनी गिनती देश के श्रेष्ठ रचनाकारों में करने लगता है।  #सुनील कुमार, बहराइच, उत्तर प्रदेश

दोस्तों इन दिनों फेसबुक पर साहित्यिक मंचों का अम्बार लगा हुआ है। मातृभाषा हिंदी के प्रचार-प्रसार तथा साहित्य साधना के उद्देश्य से स्थापित इन फेसबुक मंचों पर आए दिन कोई न कोई लेखन प्रतियोगिता आयोजित होती रहती है जिसमें प्रतिभाग करने वाले रचनाकारों की संख्या सैकड़ों-हजारो़ में होती है। इन प्रतियोगिताओं में प्रतिभाग करने वाले प्रतिभागियों को मंच द्वारा आनलाइन श्रेष्ठ कवि/कवित्री,श्रेष्ठ रचनाकार अथवा कोई अन्य सम्मान पत्र देकर प्रोत्साहित किया जाता है।

विशेषकर नवोदित रचनाकारों में इन सम्मानपत्रों के प्रति अच्छा खासा लगाव देखने को मिलता हैं। जब इन मंचों से जुड़े रचनाकारों की संख्या अच्छी खासी हो जाती है तब बहुत से फेसबुक मंच संचालकों द्वारा अर्थ लाभ कमाने के उद्देश्य रचनाकारों लिए नई-नई स्कीमें लॉन्च की जाती हैं जैसे फेसबुक पटल पर आयोजित एकल अथवा समूह काव्य पाठ में प्रतिभागिता,ई बुक प्रकाशन व साझा संग्रहों में सह रचनाकार के रूप में प्रतिभागिता आदि।

फेसबुक मंच संचालकों द्वारा दैनिक लेखन प्रतियोगिताओं अथवा अवसर विशेष पर आयोजित प्रतियोगिताओं के प्रतिभागियों के बीच शुल्क आधारित ई बुक व साझा कविता, कहानी या लघुकथा संग्रह प्रकाशन का प्रस्ताव रखा जाता है तथा संग्रह में शामिल रचनाकारों को आकर्षक सम्मान पत्र देने का आफर भी दिया जाता है। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि हर नवोदित रचनाकार का सपना होता है कि उसकी रचना किसी पुस्तक में प्रकाशित हो और उसे समाज में सम्मान मिले।

अपने इस सपने को साकार करने के लिए नवोदित रचनाकार अच्छी खासी कीमत अदा करने को भी तैयार रहते हैं। नवोदित रचनाकारों की इसी कमजोरी का लाभ बहुतेरे फेसबुक संचालक उठाते हैं। वे अपने नियम-शर्तों के अधीन रचनाकारों से उनकी रचनाएं और अच्छा-खासा शुल्क लेकर अपने संपादन में साझा संग्रह प्रकाशित कर आर्थिक लाभ कमाते हैं। फेसबुक मंच संचालकों की इस व्यवसायिक स्कीम में शामिल रचनाकारों को अपनी रचना और पैसे के बदले में मिलती है प्रकाशित संग्रह की एक प्रति और श्रेष्ठ कवि/कवित्री का सम्मान पत्र।

दो-चार साझा संग्रहों में शुल्क आधारित रचनाएं प्रकाशित कराने के बाद नवोदित रचनाकार अपनी गिनती देश के श्रेष्ठ रचनाकारों में करने लगता है। हालांकि इसमें सारी गलती रचनाकारों की नहीं होती है। शुल्क आधारित साझा संग्रहों में प्रतिभागिता के बाद उन्हें संपादक अथवा प्रकाशक द्वारा दिया जाने वाले श्रेष्ठ रचनाकार, श्रेष्ठ कवि-कवित्री, श्रेष्ठ शब्दशिल्पी, साहित्य साधक, साहित्य शिरोमणि आदि सम्मान पत्र ही उसे इस गलतफहमी का शिकार बना देते हैं। ऐसे मंच संचालकों का एक मात्र उद्देश्य साहित्य साधना की आंड़ में आर्थिक लाभ कमाना होता है।

फ़ेसबुक साहित्यिक मंचों पर आए दिन प्रकाशित शुल्क आधारित साझा संग्रहों का विज्ञापन इसका ज्वलंत उदाहरण है। साझा संग्रहों के इस व्यवसाय में आर्थिक लाभ संपादक और प्रकाशक कमाता है रचनाकार तो मात्र छला जाता है। निष्कर्ष रूप में नवोदित रचनाकारों से बस इतना कहना चाहूंगा कि किसी भी साझा संग्रह में प्रकाशन हेतु आप अपनी रचना तभी भेजें जब प्रकाशक या संपादक द्वारा साझा संग्रह में रचना प्रकाशन हेतु आपसे कोई शुल्क न लिया जाए बल्कि संग्रह में शामिल आपकी रचना के एवज में आपको लेखकीय प्रति दी जाए।

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साझा संग्रहों का फलता-फूलता व्यवसाय... दो-चार साझा संग्रहों में शुल्क आधारित रचनाएं प्रकाशित कराने के बाद नवोदित रचनाकार अपनी गिनती देश के श्रेष्ठ रचनाकारों में करने लगता है।  #सुनील कुमार, बहराइच, उत्तर प्रदेश

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