
सत्येन्द्र कुमार पाठक
मध्य प्रदेश के उत्तरी-पूर्वी छोर पर स्थित रीवा, जिसे कभी ‘विंध्य प्रदेश की राजधानी’ होने का गौरव प्राप्त था, आज भी अपनी विशिष्ट पहचान, गौरवशाली इतिहास, और मनमोहक प्राकृतिक सौंदर्य के कारण भारतीय पर्यटन और इतिहास के मानचित्र पर चमकता है। लगभग 6,240 वर्ग किलोमीटर के त्रिभुजाकार क्षेत्र में फैला यह जिला केवल पत्थरों और नदियों का संगम नहीं, बल्कि सफेद शेरों की जन्मभूमि और भारत की आधुनिक प्रगति का एक ज्वलंत उदाहरण भी है।
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रीवा की सबसे बड़ी और विश्वव्यापी पहचान है सफेद शेर (White Tiger)। यह वह पुण्य भूमि है जहाँ के बघेला राजाओं ने न केवल विश्व का पहला सफेद शेर पकड़ा, बल्कि उसे पाला और उसका संरक्षण किया। इस शाही विरासत का केंद्र था गोविंदगढ़ किला, जहाँ सर्वप्रथम सफेद शेर को रखा गया था। रीवा का वह महान गौरवशाली प्रतीक था – ‘मोहन’। आज विश्व के हर कोने में जितने भी सफेद शेर पाए जाते हैं, वे सभी इसी ‘मोहन’ के वंशज हैं। इस अमूल्य विरासत को समर्पित करते हुए भारत सरकार ने 1987 में एक डाक टिकट भी जारी किया था।
इस विरासत को आगे बढ़ाते हुए महाराजा मार्तण्ड सिंह बघेल व्हाइट टाइगर सफारी एवं चिड़ियाघर मुकुंदपुर रीवा और सतना की सीमा पर स्थित है। रीवा शहर से केवल 13 कि.मी. की दूरी पर (निपनिया-तमरा रोड) होने के कारण यह सतना की तुलना में रीवा से अधिक सुगम और नजदीक है, जो रीवा को सही मायनों में ‘लैंड ऑफ़ व्हाइट टाइगर’ सिद्ध करता है। रीवा का इतिहास बघेला राजपूतों के शौर्य और प्राचीन धर्म-संस्कृति की गाथाओं से भरा पड़ा है। रीवा शहर बिछिया और बीहर नदी के पवित्र संगम पर बसा है, और इसी संगम की गोद में खड़ा है सदियों पुराना रीवा किला। इस किले की नींव मूल रूप से 1539 ई. में शेरशाह सूरी के पुत्र जलाल खान द्वारा रखी गई थी, लेकिन इसका निर्माण 1617 ई. में राजा विक्रमदित्य द्वारा पूर्ण कराया गया।
रीवा किले का मुख्य भाग बघेला म्यूजियम कहलाता है, जो बघेला राजवंश की समृद्ध सांस्कृतिक और शाही विरासत को दर्शाता है। यह संग्रहालय अतीत के उन गौरवशाली क्षणों को जीवंत करता है जब रीवा विंध्य प्रदेश का गौरव था। रीवा किले के भीतर स्थित भगवान महामृत्युंजय का मंदिर इस क्षेत्र का एक विशिष्ट धार्मिक केंद्र है। यहाँ स्थापित भगवान शिव का 1008 छिद्रों वाला शिवलिंग भारत में इकलौता है, जो इसे अत्यंत दुर्लभ और पूजनीय बनाता है। यह मंदिर बिछिया और बीहर नदी के संगम पर होने के कारण इसकी धार्मिक महत्ता और भी बढ़ जाती है।
रीवा नगर के पूर्व दिशा में स्थित चिरहुला नाथ हनुमान जी का मंदिर एक प्रसिद्ध सिद्धपीठ है। इसका निर्माण महाराजा भाव सिंह के शासनकाल में हुआ था। मान्यता है कि इसकी स्थापना हनुमान जी की कृपा प्राप्त हनुमान दास ने की थी। यह मंदिर परिसर 12 ज्योतिर्लिंग मंदिरों, हवन मंडप, और रामसागर व खेमसागर हनुमान मंदिर से सुसज्जित है। प्रत्येक मंगलवार और शनिवार को यहाँ हजारों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। पचमठा मंदिर आदि-शंकराचार्य द्वारा अनुग्रहित माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार, उन्होंने यहाँ कुछ दिन निवास किया था, और इसे उनके द्वारा स्थापित पांचवा मठ माना जाता है।
देउर कोठा रीवा की प्राचीनता को दर्शाता एक अत्यंत महत्वपूर्ण बौद्ध स्तूप स्थल है। इसका निर्माण महान सम्राट अशोक द्वारा करवाया गया था, जो रीवा को मौर्यकालीन इतिहास से जोड़ता है। रीवा का पठारीय क्षेत्र अपनी मनमोहक प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है। कैमोर और विंध्याचल की पहाड़ियों से उतरने वाली नदियाँ यहाँ कई शानदार जलप्रपातों का निर्माण करती हैं, जो इसे एक प्राकृतिक पर्यटन स्थल बनाते हैं। रीवा की जीवनरेखाएँ टोंस, बीहर और बिछिया नदियाँ हैं।
मुख्य जलप्रपात:
- चचाई जलप्रपात – टोंस व तामस नदी की सहायक बीहर नदी पर स्थित, रीवा शहर से लगभग 31 कि.मी. दूर मऊगंज में।
- बहुती जलप्रपात – जिले का एक अन्य प्रसिद्ध और दर्शनीय जलप्रपात।
- केंवटी जलप्रपात – ‘लैंड ऑफ़ व्हाइट टाइगर’ की पहचान से जुड़ा महत्वपूर्ण जलप्रपात।
- पुरवा जलप्रपात – रीवा के पर्यटन स्थलों में शामिल एक आकर्षक जलप्रपात।
रीवा केवल अतीत के गौरव तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भारत की प्रगति में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। गुढ़ तहसील की बदवार पहाड़ियों पर एशिया का सबसे बड़ा सोलर पार्क (750 MW) बनाया गया है। इसका उद्घाटन 10 जुलाई 2020 को प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा किया गया था। यह पार्क न केवल रीवा के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए गौरव का विषय है। हिंदी और बघेली भाषीय रीवा की पहचान केवल इतिहास और प्रगति से नहीं है, बल्कि यहाँ की विशिष्ट कला और संस्कृति से भी है। सुपाड़ी से बने खिलौने और मूर्तियाँ विश्वभर में प्रसिद्ध हैं। रीवा की समृद्ध संस्कृति का आधार यहाँ की मुख्य बोली बघेली भाषा है।
प्रमुख धार्मिक और सांस्कृतिक स्थल:
- गोविंदगढ़ किला – पहला सफेद शेर रखा गया।
- देवतालाब – भगवान शिव का एक अद्भुत मंदिर।
- लक्ष्मणबाग धाम – चारों धाम के देवताओं की प्राण प्रतिष्ठा।
- ढुढेश्वर नाथ मंदिर (गुढ़) – प्रसिद्ध शिव मंदिर।
- रानी तालाब – रीवा शहर में प्रसिद्ध स्थल।
- शारदा माता मंदिर (बुड़वा)।
- बसामन मामा मंदिर, साईं मंदिर, वैष्णवी देवी मंदिर, पडुई हनुमान मंदिर तमरा।
साहित्य और बौद्धिक केंद्र:
अखिल भारतीय साहित्य परिषद का 17वाँ अखिल भारतीय अधिवेशन 2025 रीवा के कृष्णा राजकपूर ऑडिटोरियम में आयोजित हुआ। इस दौरान सत्येन्द्र कुमार पाठक और अन्य साहित्यकारों को उनके योगदान के लिए सम्मानित किया गया। रीवा, जो 24°18′ और 25°12′ उत्तरी अक्षांश तथा 81°2′ और 82°18′ पूर्वी देशांतर के बीच स्थित है, इतिहास, प्रकृति और आधुनिकता का एक अद्भुत संगम है। यह ‘लैंड ऑफ़ व्हाइट टाइगर’ केवल एक भौगोलिक क्षेत्र नहीं है, बल्कि विंध्य के गौरव, बघेल शौर्य और प्रगतिशील भारत की सुंदर कहानी है।








