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राजनीति

अगला बयान हो सकता है ‘दाड़ी रखने से हर कोई विश्वामित्र नहीं बन जाता’

अगला बयान हो सकता है ‘दाड़ी रखने से हर कोई विश्वामित्र नहीं बन जाता’, गली-मुहल्ले में नेता बैठे हुये हैं। हो सकता है मामले धार्मिक लहर आ गयी तो ज्ञानी नेता इस दाड़ी को विश्वामित्र और दुर्वाशा से न जोड़ने लगे। पढ़ें राज शेखर भट्ट की रिपोर्ट-

देहरादून। हालांकि सभी को पता है कि हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दाड़ी का शौक रखते हैं। जिसे फैशन और लुक की नजर से भी देखा जा सकता है। हर इनसान की अपनी इच्छा होती है और जिसे संवैधानिक दृष्टि से भी कोई समाप्त नहीं कर सकता है। लेकिन राजनीति एक ऐसा गंदा क्षेत्र बन चुका है कि जिसका प्रकोप हर ओर देखने में नजर आता है।

उदाहरण के लिए राजनीति में तो राजनीति है ही, लेकिन अब धर्म में भी राजनीति और जीवन में भी राजनीति, कोई पैदा हो रहा है तो राजनीति और कोई मर रहा है तो भी राजनीति हो रही है। कोई कुछ बोल दे तो राजनीति, कोई खाना खा ले, कपड़े पहन ले तो भी राजनीति और राजनीति होते ही चटपटे बयान शुरू हो जाते हैं।

शुरूआत से देखें तो बीते दिनों सीएम धामी की ओर से राहुल गांधी पर तंज कसा गया था। तंज था राहुल गांधी की दाड़ी को लेकर, जिसे मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से जोड़कर कहा। उन्होंने बस इतना कहा कि दाढ़ी बढ़ाने से कोई प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नहीं बन जाता। यह तंज पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को रास नहीं आया।

पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने भी वर्तमान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के तंज का जवाब तंज कसते हुये दे दिया। उन्होंने कहा कि दाढ़ी रखने से कोई गुरु रविंद्रनाथ टैगोर नहीं बन जाता। बहरहाल, अगर यही राजनीति है तो हो सकता है यह मामला और तूल पकड़ सकता है। वर्तमान मुख्यमंत्री ने राहुल गांधी की दाड़ी को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से जोड़ दिया।

पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने उस दाड़ी को रविन्द्र नाथ टैगोर से जोड़ दिया। जबकि राहुल गांधी की दाड़ी का न प्रधानमंत्री की दाड़ी से कोई मतलब था और न ही रविन्द्र नाथ टैगोर की दाड़ी से। हमारे देश में राजनीतिज्ञों की कमी नहीं है। गली-मुहल्ले में नेता बैठे हुये हैं। हो सकता है मामले धार्मिक लहर आ गयी तो ज्ञानी नेता इस दाड़ी को विश्वामित्र और दुर्वाशा से न जोड़ने लगे।

मामला यह है कि राहुल गांधी इन दिनों भारत जोड़ो यात्रा निकाले हैं और अपनी बढ़ी हुई दाढ़ी को लेकर चर्चा में हैं। राजनीति के गलियारे हैं, जहां तंज और पंच के बिना काम नहीं चलता। राजनीति में कभी-कभार हवाई फायरिंग भी होती हैं, लेकिन इस मामले में अभी ऐसी स्थिति नहीं आई है।

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अगला बयान हो सकता है दाड़ी रखने से हर कोई विश्वामित्र नहीं बन जाता, गली-मुहल्ले में नेता बैठे हुये हैं। हो सकता है मामले धार्मिक लहर आ गयी तो ज्ञानी नेता इस दाड़ी को विश्वामित्र और दुर्वाशा से न जोड़ने लगे।

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