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हाईकोर्ट ने डीएम पौड़ी को किया तलब

हाईकोर्ट ने डीएम पौड़ी को किया तलब, इस बीच डीएम ने 18 दिसंबर को नोटिस जारी कर 15 दिन के भीतर अतिक्रमणकारियों को वहां से हटने के लिए कहा था। 4 जनवरी को पुलिस की सुरक्षा में भवन ध्वस्त कर दिए गए। याचिकाकर्ता ने इस आदेश को हईकोर्ट में चुनौती देते हुए कहा कि प्रभावितों के पुनर्वास की व्यवस्था किए बिना उन्हें हटाया जा रहा है। 

नैनीताल। नैनीताल हाईकोर्ट ने कालागढ़ डैम के आसपास बने भवनों को ध्वस्त किए जाने के डीएम पौड़ी के आदेश पर लगी रोक बरकरार रखी है। मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंद्र एवं वरिष्ठ न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की खंडपीठ ने शुक्रवार को डीएम पौड़ी के कोर्ट में नहीं पेश होने पर गहरी नाराजगी जताई। 11 फरवरी को डीएम पौड़ी को फिर तलब किया गया है और उसी दिन मामले की सुनवाई भी होगी।

मामले के अनुसार कालागढ़ विकास एवं उत्थान समिति ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर कहा था कि 1961 कालागढ़ डैम बनाने के लिए वन विभाग ने सिंचाई विभाग को सशर्त करीब 22 हजार एकड़ भूमि दी थी। शर्त यह थी कि डैम के लिए जरूरत भर की भूमि प्रयोग में लेने के बाद शेष बची भूमि वन विभाग को वापस कर दी जाएगी। ऐसा हुआ नहीं इस जमीन पर टाउनशिप बरा दी गई। इसके खिलाफ 1999 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर हुई थी तब कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार से अतिक्रमण हटाने के लिए कहा था।

उस आदेश का पालन नहीं हुआ। दिसंबर 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने केएन गोदावरन मामले में पुनर्वास व विस्थापन की व्यवस्था के साथ अतिक्रमण हटाने के लिए कहा था। 2017 में यह मामला एनजीटी के समक्ष पहुंचा। तब स्थानीय प्रशासन ने एक साल के भीतर अतिक्रमण हटाने का अंडरटेकिंग एनजीटी को दिया था।

इस बीच डीएम ने 18 दिसंबर को नोटिस जारी कर 15 दिन के भीतर अतिक्रमणकारियों को वहां से हटने के लिए कहा था। 4 जनवरी को पुलिस की सुरक्षा में भवन ध्वस्त कर दिए गए। याचिकाकर्ता ने इस आदेश को हईकोर्ट में चुनौती देते हुए कहा कि प्रभावितों के पुनर्वास की व्यवस्था किए बिना उन्हें हटाया जा रहा है। 7 जनवरी को हाईकोर्ट ने डीएम के आदेश पर रोक लगा दी थी और उन्हें कोर्ट में तलब किया था पर पेश नहीं हुए।

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हाईकोर्ट ने डीएम पौड़ी को किया तलब, इस बीच डीएम ने 18 दिसंबर को नोटिस जारी कर 15 दिन के भीतर अतिक्रमणकारियों को वहां से हटने के लिए कहा था। 4 जनवरी को पुलिस की सुरक्षा में भवन ध्वस्त कर दिए गए। याचिकाकर्ता ने इस आदेश को हईकोर्ट में चुनौती देते हुए कहा कि प्रभावितों के पुनर्वास की व्यवस्था किए बिना उन्हें हटाया जा रहा है। 

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