भारतवर्ष की संस्कृति सभ्यता को एक सूत्र में बांधे रखती है ‘हिन्दी भाषा’
नित-नित हो गुणगान केवल दिवस तक सीमित न हो हिन्दी की पहचान
भुवन बिष्ट
पिछले वर्ष से वैश्विक महामारी कोरोना ने सभी को हैरान परेशान अवश्य किया किन्तु सभी के धैर्य साहस ने इसे परास्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। कोरोना टीकाकरण अभियान को सफल बनाना हो तथा कोरोना से छुटकारा पाने के लिए हर भारतवासी, हर जनमानस ने एकता की झलक दिखलायी है । ऐसी ही एकता,अंतर्मन की चेतना से हिन्दी को मान सम्मान दिलाने की नितान्त आवश्यकता है। आज हर जनमानस अंग्रेज़ी का बोझ उठाये हुए है और अपनी मातृभाषा भाषा हिन्दी को केवल दिल में दबाये बैठा हुआ है। वास्तव में देखा जाय तो आज हिन्दी को केवल दिवस तक सीमित करने में सरकारों की भूमिका तो रही है ही किन्तु आमजनमानस ने भी मातृभाषा हिन्दी को बेगाना सा कर दिया है। क्योंकि अंग्रेज़ी को हर जनमानस अब प्रतिष्ठा से भी जोड़ने लगा है।
सोचा जाय तो बहुभाषाओं का ज्ञान होना कोई बुराई नहीं है किन्तु मातृभाषा हिन्दी को नकारात्मक दृष्टि से देखना अवश्य ही घातक है। भाषाओं में आंचलिक भाषाओं का भी अपना महत्व है आंचलिक भाषाऐं आंचलिक संस्कृति परंपराओं से जोड़े रखती है इसके साथ साथ हिन्दी भाषा पूरे राष्ट्र को एक माला में पिरोकर रखने का कार्य करती है। मातृभाषा हिन्दी पूरे भारतवर्ष की संस्कृति सभ्यता परंपराओं को एक सूत्र में बांधे रखती है यह पूरे राष्ट्र की एकता अखण्डता को दिखलाती है। हिन्दी भाषा को हम सभी भले ही अनेकों नाम देने में सक्षम हों चाहे वह राष्ट्रभाषा, मातृभाषा , राजभाषा किन्तु हम सभी ने इसे अपनी आत्मारूपी मन में सर्वप्रथम उतारने का प्रयास शायद ही किया हो।
क्योंकि आज सोशल मीडिया चाहे वह फेसबुक हो या व्हटसअप या टयूटर आदि अनेकों माध्यम जिनसे एक दिवस में तो लगता है कि मानो अब बाढ़ सी आ गयी है चाहे वह किसी दिवस पर ही क्यों न हो। कट पेस्ट, इधर का उधर,फार्वड आदि माध्यमों से उस समय ऐसा लगता है कि मानो अब सब कुछ पल भर में सुधर गया है और सबकी अंतःमन की चेतना मानो जागृत हो गयी हो। लेकिन दिवस बीतते ही लगता है कि बाढ़ अपने साथ सब कुछ बहा कर ले गयी है और रह जाती है केवल खामोशी। कब तक ऐसा ही सब कुछ चलता रहेगा, हिन्दी को मान सम्मान दिलाने के लिए कब सबके मन की अंर्तआत्मा जागृत होगी यह भी विचारणीय है।
आज भले ही हम सभी हिन्दी दिवस के अवसर पर या हिन्दी पखवाड़े के अवसर पर हिन्दी का खूब गुणगान करते हैं, क्या वास्तव में हम सभी इसे अपने जीवन में अपनाते हैं? क्या कभी हमने अपने परिवार व बच्चों से हिन्दी को अपनाने के लिए प्रेरित किया है? आज यह विचारणीय एंव चिंतनीय प्रश्न है। जब बात स्वंय या स्वंय के परिवार द्वारा हिन्दी को अपनाने की होती है तो सभी अपने कदम पीछे खींचने लग जाते हैं। क्योंकि कहीं हिन्दी से उनका मान सम्मान व सामाजिक रूतबा कम न हो जाय। हिन्दी का स्वंय के घर में स्वदेश में ये हाल बहुत चिंतनीय व विचारणीय है।
सोसल मिडिया पर चाहे वह फेसबुक हो अथवा व्हटसअप इन सभी पर मानो एक दिवस के लिए एक क्रांति सी आ जाती है लेकिन विडम्बना यह है कि यह क्रांति मात्र हमारे मोबाइलों तक सिमटकर रह जाती है। इसे हम सभी अपने हृदय में उतारने की कोशिश भी नहीं करते हैं। हिन्दी कब राष्ट्रभाषा का स्थान ले पायेगी यह विचारणीय एंव मनन योग्य है। आज हिन्दी अपने ही देश बेगानी सी बनते जा रही है। कारण है आज दिखावे की प्रतिस्पर्धात्मक भावना का जन्म होना। आज अंग्रेजी भाषा ने सभी के दिलों दिमाक पर कब्जा बना लिया है।
सभी अपने अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम से इंगलिस मिडियम विद्यालयों में ही पढ़ाना पसंद कर रहे हैं, और हिन्दी भाषा को केवल हिन भावना की दृष्टि से देखा जाने लगा है। यह सबसे अधिक चिंताजनक एंव मनन योग्य प्रश्न है। हिन्दी केवल बोली भाषा नहीं अपितु यह हम सबकी शान है। हमारे देश में हिन्दी दिवस हिन्दी सप्ताह धूमधाम से मनाया जाता है। आज हिन्दी विश्व की भाषाओं में सर्वोच्च स्थान प्राप्त करने के लिए तैयार है ।आजकल भले ही अंग्रेजी भाषा का कुछ स्थानों पर महत्व बड़ा हो किन्तु इससे हिन्दी भाषा के प्रभाव को कम नहीं किया जा सकता है। हिन्दी आज भी सबकी पहचान बनी हुई है।
हिंदी भारत में सबसे ज्यादा बोले जाने वाली भाषा है और इसे राजभाषा का दर्जा प्राप्त है। 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा में हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया गया था। हिंदी के महत्व को बताने और इसके प्रचार प्रसार के लिए राष्ट्रभाषा प्रचार समिति के अनुरोध पर 1953 से प्रतिवर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस के तौर पर मनाया जाता है।भारतीयों के लिए वह दिन गर्व करने का था जब संविधान सभा ने हिंदी को देश की आधिकारिक भाषा के रूप में अपनाया। हिन्दी भाषा को कैसे अधिक से अधिक बढ़ावा दिया जाय इसके लिए सभी जनमानस सहित सरकारों को भी निरंतर प्रयासरत रहने की आवश्यकता है।
आजादी के तिहत्तर वर्षों बाद भी हिन्दी को अपने ही देश में राष्ट्र भाषा का सम्मान प्राप्त नहीं हो पाया जो सबसे अधिक चिंताजनक है। किन्तु राजभाषा के रूप प्राप्त सम्मान से हिन्दी आज भी अपने को गौरवान्वित महसूस करती है। हिन्दी भाषा में साहित्य का अपार भंडार है और हमारे देश हिन्दी भाषा प्रेमीयों का भी अपार भंडार है। किन्तु आज अंग्रेजी भाषा को एक फैशन के रूप में बहुत अधिक बढ़ावा दिया जाने लगा है जिससे कभी कभी हिन्दी को लोग हिन भावना की दृष्टि से देखने लगते हैं जो अत्यधिक पीड़ादायक है। आज अपने ही भारतवर्ष में हिन्दी भले संघर्षरत हो किन्तु विदेशों में भी हिन्दी ने अपना लोहा सदा मनवाया है।
हिन्दी को हीन भावना की दृष्टि से देखना निंदनीय है। हिन्दी सम्मानजनक भाषा है जिसे राजभाषा,मातृभाषा का स्थान भी प्राप्त है। 14 सितंबर को भारत की संविधान सभा ने अपनी आधिकारिक भाषा के रूप में हिंदी को अपनाया, प्रत्येक वर्ष हिंदी दिवस के रूप में ,हिन्दी सप्ताह के रूप में मनाया जाता है। भारतवर्ष के कई स्कूल, कॉलेज और कार्यालयों में इस दिन को बहुत उत्साह के साथ मनाते हैं। हिन्दी दिवस मनाने के लिए इन जगहों को सजाया जाता है और अनेक स्थानों पर भाषा प्रेमी लोग भारतीय परिधान पहनकर भी हिन्दी के प्रति अपने अटूट प्रेम को दिखलाते हैं। हिन्दी दिवस पर कई लोग हिंदी भाषा और भारतीय संस्कृति के महत्व के बारे में बात करने के लिए आगे आते हैं।
विद्यालय हिंदी वाद-विवाद, कविता और कहानी कहने वाली प्रतियोगिताओं और सांस्कृतिक कार्यक्रमों की मेजबानी करते हैं। आज आवश्यकता है हम सभी को हिन्दी को अधिक से बढ़ावा देना चाहिए। हिन्दी सदैव ही गौरवशाली रही है और हम इसकी तुलना अंग्रेज़ी से करके इसके मान सम्मान को कम नहीं कर सकते। हम सभी को सच्चे मन से हिन्दी को राष्ट्र भाषा का सम्मान दिलाने के सदैव प्रयासरत रहना चाहिए। हम सभी को न केवल मोबाईल सोसल मिडिया या मात्र एक दिवस तक इस भाषा को सीमित नहीं रखना चाहिए अपितु सदैव इसे अपनाकर हिन्दी को सम्मान प्रदान करना चाहिए।
हम सभी को स्वंय एवं अपने परिवार से भी हिन्दी भाषा को बढ़ावा देने के लिए प्रयास करना चाहिए। जिससे गौरवशाली हिन्दी का सदैव सम्मान बना रहे। इस समय वैश्विक महामारी कोरोना से निबटने के लिए हम सभी ने सदैव जैसे एकता की झलक दिखलायी है उसी प्रकार सदैव मिलजुलकर, एकता रूपी पुंज से हिन्दी भाषा को भी मान सम्मान दिलाने के लिए प्रयासरत रहना चाहिए। हिन्दी भाषा का नित नित हो गुणगान, केवल दिवस तक सीमित न रह जाये हिन्दी की पहचान।