संत कबीर का समाज सुधारक व्यक्तित्व
संत कबीर का समाज सुधारक व्यक्तित्व, बहुत से लोगों का मानना है कि कबीर विवाहित थे।इनकी पत्नी का नाम लोई था। इनकी दो संतानें थीं। एक पुत्र और एक पुत्री। पुत्र का नाम कमाल और पुत्री का नाम कमाली था। # सुनील कुमार, बहराइच, उत्तर प्रदेश
हमारा देश संत महापुरुषों की जन्मभूमि रहा है। समय-समय पर अनेकों संत-महापुरुषों ने इस पावन धरा पर जन्म लिया है। कबीर दास भी उन्हीं में से एक हैं। कबीर दास न केवल एक संत बल्कि एक समाज सुधारक, सजग कवि और संसारी भी थे। कबीर दास में सत्य कहने का अदम्य साहस था,जो इनकी रचनाओं में स्पष्ट परिलक्षित होता है।
इसीलिए इनकी रचनाएं सबसे अलग हैं। इनकी रचनाएं आडंबरों के बंधन तोड़ती हैं और समाज को नई दिशा प्रदान करती हैं। कबीरदास का जन्म ऐसे समय में हुआ था जब हमारा समाज जाति-पात,ऊंच नीच,बाल विवाह, सतीप्रथा,बलिप्रथा जैसी अनेकों कुरीतियों से घिरा हुआ था। ऐसे समय में कबीर दास ने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज को जगाने का काम किया।
कहते हैं संत कबीर की दिव्यवाणी जनमानस में नई चेतना जागृत कर देती थी। आज से सैकड़ों वर्ष पूर्व लिखे उनके दोहों की प्रासंगिकता आज भी उतनी ही है जितना कि वर्षों पहले थी।कबीर के दोहे हमारे धर्म ग्रंथों के सार से कम नहीं हैं। उनके हर एक दोहे में कोई न कोई गूढ़ अर्थ निहित है। समाज का कोई भी व्यक्ति इनका अध्ययन कर बहुत कुछ सीख सकता है। जो कि उसके सफल जीवन यापन में सहायक होगा।
संत कबीर के जन्म के संबंध में कई भ्रांतियां हैं। बहुत से विद्वानों का मत है कि इनका जन्म लहरतारा,वाराणसी (उत्तर प्रदेश) में सन् 1398 ई. में नीरू व नीमा नामक जुलाहा दंपत्ति के घर में हुआ था। जबकि कुछ विद्वानों का मत है कि कबीर का जन्म एक विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से हुआ था,जिसने लोक-लाज के भय से जन्म देते ही इन्हें त्याग दिया था। नीरू एवं नीमा दंपत्ति को ये तालाब के किनारे पड़े मिले थे और उन्होंने इनका पालन-पोषण किया था। कबीर के गुरु प्रसिद्ध संत स्वामी रामानंद थे।
बहुत से लोगों का मानना है कि कबीर विवाहित थे।इनकी पत्नी का नाम लोई था। इनकी दो संतानें थीं। एक पुत्र और एक पुत्री। पुत्र का नाम कमाल और पुत्री का नाम कमाली था। जबकि बहुत से विद्वानों का मानना है कि कबीर अविवाहित थे। कुछ विद्वानों का मानना है कि कबीर सन 1518 ई. में स्वर्गवासी हो गए। जबकि अधिकांश विद्वानों का मत है कि उन्होंने स्वेच्छा से मगहर में जाकर अपने प्राण त्यागे थे।मृत्यु के समय में भी उन्होंने जनमानस में व्याप्त उस अंधविश्वास को आधारहीन सिद्ध करने का प्रयत्न किया जिसके आधार पर यह माना जाता था कि काशी में मरने पर स्वर्ग प्राप्त होता है और मगहर में मरने पर नरक।
विद्वानों के मतानुसार कबीरदास पढ़े-लिखे नहीं थे। उन्होंने जो कुछ सीखा संतों के सत्संग से ही सीखा था। इसीलिए उनकी भाषा साहित्यिक नहीं थी।उन्होंने व्यवहार में प्रयुक्त होने वाली सीधी-सादी भाषा में ही अपने उपदेश दिए। उनकी भाषा में अनेक भाषाओं जैसे अरबी, फारसी, भोजपुरी, पंजाबी, बुंदेलखंडी, ब्रज, खड़ी बोली आदि के शब्द मिलते हैं। इसी कारण इनकी भाषा को पंचमेल खिचड़ी या सधुक्कड़ी भाषा कहा जाता है।कबीर ने सहज, सरल और सरस शैली में उपदेश दिए।
पढ़ा-लिखा न होने के कारण उन्होंने स्वयं अपनी रचनाओं को लिपिबद्ध नहीं किया,बल्कि इनके अनुयायियों ने ही इनकी रचनाओं को लिपिबद्ध किया।कबीर की वाणियों का संग्रह बीजक के नाम से प्रसिद्ध है, जिसके तीन भाग हैं- साखी, सबद और रमैनी। कबीर निर्गुण एवं निराकार ब्रह्म के उपासक थे।वह ज्ञानमार्गी शाखा के कवि थे उन्होंने ज्ञान का उपदेश देकर जनता को जागृत किया।कबीर ने प्रभु भक्ति का संदेश देने के साथ-साथ नीतिगत तत्वों का भी उद्घाटन किया।
उन्होंने सत्य और अहिंसा को जीवन का आधार तत्व मानते हुए सत्य को सबसे बड़ा तप माना।कबीर महान समाज सुधारक थे। उन्होंने तत्कालीन समाज में फैली अनगिनत रूढ़ियों पर जमकर प्रहार किया। उन्होंने समाज में व्याप्त अंधविश्वासों, पाखंडों, मूर्ति पूजा, छुआछूत तथा हिंसा का विरोध किया।उनका मानना था कि ईश्वर का वास हमारे हृदय में है। उसे मंदिर,मस्जिद ,चर्च या गुरुद्वारे में ढूंढने की जरूरत नहीं है।कबीर ने बाह्य आडंबरों का विरोध करते हुए समाज को एक नवीन दिशा देने का प्रयास किया। उन्होंने जाति-पात के भेदभाव को दूर करते हुए शोषित जनों के उद्धार का प्रयत्न किया तथा हिंदू- मुस्लिम एकता पर बल दिया।
कबीर ने गुरु को सर्वोपरि माना। उनके अनुसार सद्गुरु के महान उपदेश भक्तों को परमात्मा के द्वार तक पहुंचा सकते हैं। इसीलिए उन्होंने गुरु को परमात्मा से बढ़कर माना है। वास्तव में कबीर महान विचारक,श्रेष्ठ समाज सुधारक,परम योगी और ब्रह्म के सच्चे साधक थे। संत कवियों में कबीरदास का एक प्रमुख स्थान है।उन्होंने अपने मन की अनुभूतियों को स्वाभाविक रूप से अपने दोहों में व्यक्त किया है।
कबीर भावना की प्रबल अनुभूति से युक्त उत्कृष्ट रहस्यवादी, समाज सुधारक, पाखंड के आलोचक, मानवतावादी और समानतावादी कवि थे। वे हिंदी साहित्य की श्रेष्ठ विभूति थे।उन्हें भक्तिकाल की ज्ञानाश्रयी व संत काव्यधारा के प्रतिनिधि कवि के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त है। निर्गुण भक्तिधारा के पथ प्रदर्शक के रूप में संत कबीर का नाम सदैव स्वर्ण अक्षरों में अंकित रहेगा।
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