
मुकेश कुमार ऋषि वर्मा
अपने पुरखों की आत्मा की तृप्ति के लिए
वैदिक काल से हम करते आ रहे हैं श्राद्ध
पीढ़ी दर पीढ़ी यह परंपरा जीवित है
कौओं को पकवान खिलाकर
हम अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं ।
सुनो साथियों –
जीते जी अपने बुजुर्गों की ले लो सुध
बाद मृत्यु के शोक मनाने,
भंडारे करने का क्या मतलब ?
पितृऋण अगर चुकाना चाहते हो,
पितृमुक्ति अगर चाहते हो
तो उनके जीते जी ही
उनकी जीवित आत्मा को तृप्त करो ।
मरने के बाद,
स्वर्ग सिधारे
हमारे पूर्वज
भला पकवानों का क्या स्वाद चखेंगे ?
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