लघुकथा : कलम की ताकत
सुनील कुमार माथुर
राजेन्द्र , गोपाल , चेतन तीनों गहरे मित्र थे और तीनों ने एक साथ पढाई करके अपने ही शहर में काम धंधे में लग गयें । गोपाल एक दैनिक समाचार पत्र में उप संपादक के पद पर कार्यरत था और राजेन्द्र सरकारी सेवा में था और चेतन साहित्य के क्षेत्र में कार्यरत था। चेतन नियमित रूप से विभिन्न पत्र – पत्रिकाओं में लिखा करता था और कई बार उसने अवैध धंधों का भंडाफोड कर स्थानीय , राज्य व राष्ट्रीय स्तर तक सम्मानित हो चुका था । चेतन ने लेखन को कभी भी कमाई का धंधा नहीं बनाया अपितु वह अपनी कलम की ताकत के जरिये समाज व राष्ट्र की सेवा करना चाहता था ।
कोरोना काल में चेतन ने देखा कि कुछ लोग आक्सीजन सिलेंडर व दवाओं की कालाबाजारी कर रहें है और लोगों की मजबूरी का अनावश्यक फायदा उठाकर भारी मुनाफा कमा रहें है । पहलें तो चेतन ने ऐसे कालाबाजारियों को प्रेम से समझाया कि दुःख की इस घडी में पीडित मानवता की सेवा करें और पुण्य कमाये । पैसा कमाना ही हैं तो मेहनत करे , स्वाभिमान के बलबूते पर पूरी ईमानदारी व निष्ठा के साथ कार्य करें व धन अर्जित करें चूंकि दूसरों को परेशानी में डालकर कमाया गया पैसा कभी भी फलता फूलता नहीं है ।
लेकिन कालाबाजारी करने वालों पर इस बात का कोई आसर नहीं पडा तब चेतन ने पत्रकार गोपाल की मदद ली और उन कालाबाजारी करने वालों का भंडाफोड किया । पुलिस ने इन कालाबाजारी करने वालों को कोर्ट में पेश किया जहां से उन्हें जेल भेज दिया । चेतन ने कालाबाजारी करने वालों को नसीहत देते हुए कहा कलम की ताकत क्या होती हैं शायद यह बात तुम्हें आज पता चली । अगर पहले ही मेरी बात मान लेते तो शायद तुम्हें आज यह दिन न देखने पडते । लेकिन अब क्या होता । अब काफी देर हो चुकी थी और कोर्ट ने इन कालाबाजारी करने वालों को जमानत देने से भी इंकार कर दिया । चूंकि कोरोना काल में ऑक्सीजन सिलेंडर व दवाओं की कालाबाजारी एक जघन्य अपराध सरकार ने घोषित कर दिया था ।
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