साहित्य लहर

…लघुकथा : आज से हम हमेशा हिन्दी बोलेंगे

प्रेम बजाज

मुनिया के पिता का देहान्त हो गया कोरोना की वजह से । वो फैक्ट्री के मालिक के घर जाकर काम करने के लिए गुहार लगाती है , मालकिन उसे काम पे रख लेती है , मुनिया भी मां के साथ काम पे जाती थी रोज़ , और वहां पर देखती थी कि सब विदेशी भाषा में बात करते हैं , जो उसकी समझ से परे था । वो अभी स्कूल जाना शुरू ही तो हुई थी कि कोरोना की वजह से स्कूल बंद और अब पिता का देहान्त , कहां से आएगी फीस , पढ़ाई खत्म ।

लेकिन मुनिया को उनका विदेशी भाषा बोलना अच्छा ना लगता । मालिक के दोस्त पुलिस अफसर अक्सर आते थे , आज भी आए और बोले … आज के दिन तो हिंदी में बात करो सब , आज हिंदी दिवस है , मुनिया सुन कर बोली …. साहब ये हिन्दी दिवस क्या होता है , हिन्दी तो हमारी मातृभाषा है फिर हम मां को एक दिन क्यों याद करते हैं , रोज़ क्यों नहीं ?? उसकी बात सबके दिल में घर कर गई , और उन्होंने उसे पुलिस की टोपी पहना दी बोले मुनिया हम तुम्हे सैल्यूट करते हैं तुमने हमारी आंखें खोल दीं , सच कहा मां को एक दिन ही नहीं सदा याद करना चाहिए , आज से हम हमेशा हिन्दी बोलेंगे ।

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