व्यंग्य : राजनीति में कोई सगा नहीं होता

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा
लोगों का मानना है कि राजनीति गंदी चीज है । उनका बिल्कुल सही मानना है । राजनीति जितनी मीठी लगती है, उससे हजार गुना कड़वी व जहरीली है । जिस तरह जहर को काले नाग अपने अंदर छुपा कर रखते हैं, ठीक वैसे ही राजनेता रखते हैं । सांप अपने दुश्मन को डसते हैं और राजनेता अपने अंध भक्तों को । युवा राजनीति में जाएं, खूब जाएं । अपना करियर चमकायें, लेकिन एक एक्सपर्ट सपेरा बनकर जाएं । नहीं तो राजनीति के शिकार बन जाएंगे ।
आप जिस वरिष्ठ राजनेता के भरोसे राजनीति में उठना चाहते हो । आपके उठने से पहले वही राजनेता आपके पर कतर देगा । और इससे भी उसका मन न भरा तो आपको मुर्गा समझकर मिर्च मसाला लगायेगा, फ्राई करेगा और खा जायेगा । लोग अपनी जाति बिरादरी के राजनेता को आंख बंद करके समर्थन करते हैं ।उसकी अच्छाई- बुराई बिल्कुल नहीं देखते । अगर अपवाद को छोड़ दें तो आपका सबसे बड़ा दुश्मन आपका वही नेता होता है । नेता कभी नहीं चाहता कि उसका समाज विकास करे । अगर विकास कर गया तो फिर नेता जी की आरती कौन उतारेगा ।
आप व्यक्तिगत फायदे के लिए या अपनी कुछ पहचान बनाने के लिए किसी राजनेता का समर्थन करते हैं, उसके अंधभक्त या चमचा बनते हैं, तब भी आप धोखा खा जाते हैं । इसका उदाहरण मैं आपको बाहर से बिल्कुल नहीं दूंगा । स्वयं की आपबीती सुनाता हूं । डा. संजय कुमार निषाद इस नाम को आजकल हर कोई जानता, पहचानता है । इनके पुत्र विधायक -सांसद हो चुके हैं और स्वयं उत्तर प्रदेश सरकार में मांस- मच्छी वाले मंत्री हैं । ये कुछ साल पहले पूर्वांचल से चले थे तब कुछ भी नहीं थे । अपने समाज की गरीबी- अशिक्षा का रोना रोया ।
अपने समाज के भोले-भाले युवाओं को मीठा- मीठा भाषण सुनाया । मैंने भी सुना और इनका भक्त बन गया । कई बार इनके कार्यक्रमों का हिस्सा बना, इनकी पार्टी व संस्था का सदस्य बना। इनके गुणगान में तमाम आर्टिकल लिखे और देश भर की पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित करवाये । ये मुझ से प्रभावित हुए ।‘ बंदा काम की चीज है । मुफ्त में कलम घिसेगा ।’ जाते-जाते मुझे सलाह दे गये कि अपने नाम के पीछे से वर्मा हटाओ और निषाद लगाओ । जब कभी फोन करते तो पूछते, “कैसे हो बाबू”…
आजकल मैं इन्हें फोन मिलाता हूं पर मिलता नहीं, पत्र लिखता हूं तो कोई जवाब नहीं आता । मुझे ऐसा लगता है कि वो….।
दूसरा उदाहरण है अपने ही क्षेत्र के विधायक जीतेन्द्र वर्मा जी का । वैसे बेचारे अब विधायक नहीं हैं । पार्टी ने पांच साल के लिए घर बिठा रखा है । लॉकडाउन में इन्होंने खूब जनसेवा की उसीसे प्रभावित होकर मैंने इनके गुणगान में कई आर्टिकल लिखे और देशभर की पत्र पत्रिकाओं में छपवाये । इनके अधिकांश कार्यक्रमों में जाने लगा था । कुछ-कुछ परिचय भी हो गया । इनके चमचे सरकारी योजनाओं का खूब फायदा उठा रहे थे । सोचा मैं भी बहती गंगा में हाथ धो लूं । एक पानी की टंकी के लिए आवेदन कर दिया । मंजूर हुई, सूची में नाम भी आया । कई मित्रों ने देखा । एक साल तक राजनेतिक आश्वासन मिलता रहा । बाद में सफेद झूठ का पुलिंदा मिला । मैंने पता लगाया तो मालूम हुआ हमारा जनसेवक तो बारह-बारह हजार में.…..।
साथियों ! अगर आप किसी राजनेता का झंडा उठा रहे हैं तो मुफ्त में न उठायें । उसके समर्थक/ अंधभक्त भी न बने । अगर मुफ्त में कुछ करना चाहते हैं तो सच्ची वाली देश सेवा करो । भक्त बनना चाहते हो तो सच्चे वाले देशभक्त बनो । पुलिस में जाओ, फौज में जाओ । किसी भी क्षेत्र में जाओ । राजनीति में जाओ तो आंख बंद करके किसी पर भी विश्वास मत करो । चाहे वो आपकी जाति धर्म का ही क्यों न हो, क्योंकि राजनीति में कोई सगा नहीं होता।
¤ प्रकाशन परिचय ¤
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From »मुकेश कुमार ऋषि वर्मालेखक एवं कविAddress »संचालक, ऋषि वैदिक साहित्य पुस्तकालय | ग्राम रिहावली, डाकघर तारौली गुर्जर, फतेहाबाद, आगरा, (उत्तर प्रदेश) | मो : 9627912535Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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