आपके विचार

दिल खोलकर प्रतिक्रिया व्यक्त कीजिए

सुनील कुमार माथुर, जोधपुर, राजस्थान

जब भी कोई श्रेष्ठ कार्य करें, किसी से अलग हटकर कोई रचनात्मक कार्य करें या कोई ऐसा अनोखा व अनूठा कार्य करें कि हमारी आंखें उसे देख कर दंग रह जाये तो ऐसे व्यक्ति को प्रोत्साहित अवश्य कीजिए। प्रायः देखा गया कि या तो देखने वाला उसे देखकर नजर अंदाज कर देता हैं या फिर अंगूठे का निशान या तालियां व्हाट्सएप पर डालकर इतिश्री कर लेता हैं जो न्याय संगत बात नहीं है। हम कोई मूक बधिर नहीं है।

परमात्मा ने हमें जुबान दी हैं। भारतीय संविधान में बोलने व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दी गई है तो फिर ऐसा मौन रहना कहां तक उचित है। अगर आप किसी कारण से बोलकर शाबाशी नहीं दे पाते हैं तो बहुत बहुत बधाई, बहुत सुन्दर कलेक्शन, पेंटिंग, कविता, वाह वाह, वेरी नाइस, अरे वाह, बहुत अच्छा, काबिले तारीफ लिखकर सामने वाले का हौसला अफजाई तो कर ही सकते हो। अपनी प्रतिक्रिया अवश्य देनी चाहिए। अगर कहीं सुधार की आवश्यकता महसूस करते हैं तो वह भी जरूर बताइएगा। इसमें शंका न करें। लेकिन किसी को हताश करने के ध्येय से कभी भी खामियां न ढूंढें और न ही किसी को बतायें। नेक कार्य की सराहना हमेंशा दिल खोलकर कीजिए। तभी सामने वाले के चेहरे पर मधुर मुस्कान हम देख पायेंगे।

प्रेम से रहिए : परमात्मा ने हमें यह मानव जीवन दिया है जो बड़ा ही दुर्लभ हैं। चौंसठ लाख योनियों में से केवल मानव ही एक ऐसा व्यक्ति है जो धन कमा रहा हैं लेकिन फिर भी वह संतुष्ट नहीं है। हाय धन, हाय धन दिन रात करता रहता हैं। धन के लिए वह परमात्मा तक को भूल गया हैं और अनैतिक कार्य तक कर रहा हैं। मारपीट, चोरी, बेईमानी, हिंसा तक वह कर इस मानव जीवन को कलंकित कर रहा हैं। जब तक जीवन हैं तब तक तो प्रेम स्नेह से रहिए हिंसा आदमी को शैतान बना देती हैं। इसलिए ईश्वर के नाम का स्मरण और प्रेम से रहें व दूसरों को भी प्रेम से रहने दीजिए।

असत्य के बजते हैं नगाड़े : कहते है कि सत्य की झंकार होती है और असत्य के नगाड़े बजते हैं। सत्य सदा सत्य ही रहता है जबकि असत्य बार बार बदलता रहता हैं। यही वजह है कि असत्य बोलने वाले को हर बार कहना पड़ता है कि मेरे कहने का मतलब यह है कि जबकि सत्य बोलने वालें को ऐसा नहीं कहना पड़ता है। हां सत्य बोलने वाले को न्याय पाने के लिए कुछ परेशानी होती है, लेकिन आखिर में जीत उसी की होती हैं। जबकि झूठ बोलने वाला बिना वजह चीख चीखकर अपने असत्य का नगाड़ा बजाता है।

जीवन का सत्य : जीवन का सत्य यहीं हैं कि सदैव ऐसा काम करों जो सर्वमान्य हो और सबके हित का हो। जब कार्य करना ही हैं तो सर्वश्रेष्ठ ही कीजिए। लड़ाई झगड़ों में उलझकर समय बर्बाद करने से कुछ भी हासिल होने वाला नहीं है। याद रखिए जहां दूसरों को समझना कठिन हो, वहां खुद को समझ लेना ही बेहतर हैं।‌ आज के समय में कोई किसी की बात सुनने को तैयार नहीं है। सब अपने मन की करते हैं। आप से भले ही राय मांग लेंगे, मगर करेंगे अपने मन की ही इसलिए हर किसी को राय न दें। जो समझ सकें उसे ही राय दीजिए। वरना समय की बर्बादी ही हैं।

मन से लड़ो : क्रोध या गुस्सा आये तो मन से लड़ें, मनुष्य से नहीं, चूंकि क्रोध का जन्मदाता आपका मन हैं न कि मनुष्य। अगर किसी ने आपकों कड़वी बात कह दी तो सुनने की हिम्मत रखियेगा। क्योंकि कड़वी बात आपकों आपका अपना ही कहेगा कोई दूसरा नहीं। अतः उससे लड़ने के बजाय अपने मन को कहे कि उसके मन में आपके प्रति ऐसा क्रोध क्यों आया। कहीं न कहीं आप में कमी है। बस उस कमी को खोज कर समय रहते सुधार लीजिए। जैसे उबलते हुए पानी में कभी भी अपनी परछाई दिखाई नहीं देती हैं, ठीक उसी प्रकार परेशान मन से सही समाधान दिखाई नहीं देते हैं। शांत होकर देखिए सभी समस्याओं का हल मिल जायेगा।

अच्छा मन : अगर आप का मन अच्छा हैं तो उसमें श्रेष्ठ विचारों का आगमन होगा। शांति होगी। हर कार्य करने में आंनद की प्राप्ति होगी। मन अच्छा हैं तो खुशियां अपार हैं। चारों ओर आंनद ही आनंद है। मन साफ सुथरा हैं तो दिल अपने आप बड़ा हो जाता हैं। जहां दया, प्रेम, स्नेह, मिलनसारिता, वात्सल्य का भाव, धैर्य, सहनशीलता, परोपकार, त्याग, संयम, नैतिकता और नम्रता व विनम्रता जैसे आदर्श गुणों का निवास होता है। मदद या परोपकार के कार्य करने के लिए केवल धन की जरूरत नहीं होती है उसके लिए अच्छे मन की भी जरूरत होती है।

बगीचे के फूल : कहते हैं कि विचार और व्यवहार हमारे बगीचे के फूल हैं जो हमारे पूरे व्यक्तित्व को महका देते हैं। इसलिए व्यक्ति को अपना व्यवहार सभी के साथ एक समान रूप से रखना चाहिए। चाहे वह बच्चा हो या जवान, स्त्री हो या पुरुष या बुजुर्ग ‌। चूंकि हमारा आदर्श व्यवहार ही हमारी असली पूंजी है। ठीक इसी प्रकार हमारे विचार भी श्रेष्ठ होने चाहिए। विचार श्रेष्ठ होगे तभी हम श्रेष्ठ साहित्य का सृजन कर सकते हैं। विचारों का आदान-प्रदान कर सकते हैं। जहां विचार और व्यवहार श्रेष्ठ होते है, उसी व्यक्ति की ख्याति दूर-दूर तक फैलती हैं और उसे यश और कीर्ति प्राप्त होती हैं और यह फूल ( विचार और व्यवहार ) उसके व्यक्तित्व को महका देते हैं।

मेहनत और जंग : आज का इंसान मेहनत से घबराता हैं और घर बैठे यश, मान सम्मान पाना चाहता है। कहते है कि देश का भविष्य युवा पीढ़ी के कंधों पर टिका है। अगर आज का युवा ही मेहनत से जी चुराता हो तब भला हम कैसे उससे उम्मीद करे कि वह भारत को ऊंचाइयों तक पहुंचा देगा और एक नये भारत का नव निर्माण करेगा। युवा शक्ति को चाहिए कि वह मेहनत से न घबराये। आज की गई मेहनत सदैव हमारे हौसलों को बुलंद बनाए रखेगी और हमें देश का एक कर्मठ नागरिक बनायें रखेगी। आप किसी भी क्षेत्र में कार्य करने के लिए जाएं, लेकिन आपकों उस क्षेत्र में मेहनत अवश्य ही करनी पड़ेगी। मेहनत की कमाई जीवन को सुख, शांति और समृद्धि प्रदान करती हैं अरे मेरे भाई ! मेहनत तो हर फिल्ड में करनी पड़ेगी बेकार पड़े रहने से तो लोहे में भी जंग लग जाती हैं फिर तो हम इंसान हैं। अगर मेहनत से जी चुरायेगे तो हमारी सारी शिक्षा दीक्षा बेकार हैं। अतः उठो, जागो और तब तक कर्म करते रहिए जब तक हमें हमारी मंजिल न मिल जाएं।

बदलें की आग : कहने को तो हम अपने आप को एक सभ्य समाज का नागरिक कहते नहीं थकते। लेकिन दिन रात बदलें की आग में भीतर ही भीतर जलते रहते हैं। कब मौका मिले कि मैं अपना पुराना हिसाब पूरा करूं अर्थात बदला लूं। जो व्यक्ति दिन रात बदलें की आग में जलता रहता हैं वह जीवन में कभी भी प्रगति नहीं कर सकता हैं। बस उसे तो बदले की भावना खाये जाती हैं और वह हर समय क्रोध की आग में जलता रहता हैं जिसके कारण उसके चेहरे व आस पास कहीं भी प्रेम, स्नेह, मिलनसारिता, वात्सल्य का भाव, धैर्य, सहनशीलता, परोपकार, त्याग की भावना दूर तक दिखाई नहीं देती हैं और वह इन गुणों से वंचित रह जाता है।
हमारे बडे बुजुर्ग कहते हैं कि क्षमा वही कर सकता हैं जो अंदर से मजबूत और समर्थशाली हो , खोखले इंसान तो सिर्फ बदलें की आग में जलते रहते हैं।

आईना : कहते हैं कि इंसान का व्यवहार भी एक आईना हैं जिससे उसका अंहकार और संस्कार दोनों दिख जाते हैं। परमात्मा ने हमें यह मानव जीवन उपहार स्वरूप प्रदान किया हैं तो फिर इस जीवन को नेक कार्य में लगाइये। परोपकार के कार्य कीजिए। भूखें को भोजन कराएं। बीमार लोगों की सेवा कीजिए। पशुओं को चारा डालिए। पक्षियों के लिए दाना पानी की व्यवस्था कीजिए। अगर आप सामर्थ्यवान है तो किसी जरूरतमंद को शिक्षा दिलाने व गरीब परिवारों की कन्या का विवाह कराकर पुण्य के भागीदार बनें आपका तनिक सा सहयोग या मदद उनका जीवन बदल देगे और वे और उनका पूरा परिवार जीवन भर आपका आभारी रहेगा।

कहा भी जाता है कि जिंदगी में सब कुछ नहीं मिलता है। कुछ चीजें मुस्कुराते हुए छोड़ देना चाहिए। परिश्रमी व्यक्ति को तो वैसे भी उम्र थका नहीं सकती, ठोकरें गिरा नहीं सकती। अगर जीतने की जिद हो तो परिस्थितियां हरा नहीं सकती। कुछ इक्ट्ठा उन्हीं के पास होता है जो बांटना जानते हो फिर चाहे भोजन हो, प्यार हो या सम्मान। कहते है कि यह दुनियां बिल्कुल वैसी ही हैं जैसा आप देखना चाहते हैं। चाहें तो कीचड़ में कमल देख लो, चाहे देख लो चांद पर दाग ।

इन्वेस्टमेंट : अच्छाई और भलाई ऐसी इन्वेस्टमेंट हैं जो कभी भी बेकार नहीं जाती हैं। इसलिए इंसान को हमेंशा दूसरों की भलाई ही करते रहना चाहिए और दूसरों के बारें में अच्छा ही सोचना चाहिए। जब हम दूसरों से अपने प्रति अच्छा व्यवहार चाहते हैं तो हमें भी दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार ही करना चाहिए। ताली एक हाथ से नहीं बजती हैं। ताली दोनों हाथों से ही बजती हैं फिर हम अच्छाई और भलाई करने में पीछे क्यों रहें। जैसा कर्म करेंगे वैसा ही फल मिलेगा तब फिर श्रेष्ठ कर्म ही कीजिए। क्यों बेकार के कामों में अपना समय व्यतीत करें।

जीवन में कभी भी हार न मानें : जीवन जीना भी एक कला है और जिसने इस कला को सीख लिया उसका जीवन धन्य हो गया। इसलिए जीवन में कभी भी हार मत हारिए। क्या पता आपकी अगली कोशिश ही आपकों कामयाबी की ओर लें जायें। प्रायः लोग छोटी-छोटी बातों से हताश व निराश हो जाते हैं और अपनी कामयाबी की मंजिल को बीच रास्ते में ही छोड़ देते हैं।‌ प्यारे साथियों ! कोई भी कार्य कठिन नहीं है। अगर आप प्रयास करें तो कठिन से कठिन कार्य आसान हो जाता है। लोग कहते हैं कि साहित्य सृजन एक आसान कार्य है, लेकिन इसे जितना आसान समझा जाता है उतना आसान है नहीं। लेखक के लेखन कार्य में फूल कम कांटे अधिक होते हैं फिर भी सृजनकर्ता उन कांटों को भी कड़ी मेहनत व लगन से फूलों में परिवर्तित करके पाठकों के समक्ष ऐसे प्रस्तुत करता हैं कि पाठक साहित्य पढने के बाद वाह वाह कर उठते हैं। इससे साबित होता है कि जीवन में कभी भी हार न मानें और कामयाबी के लिए निरन्तर प्रयास करते रहें। इज्जत शौहरत और दुआएं खरीदी नहीं जाती हैं। इन्हें तो अपने व्यवहार से ही कमाना पडता हैं।

इज्जत : समाज में हर किसी का मान सम्मान करना व उन्हें इज्जत देना यह हमारे आदर्श संस्कार ही है। इंसान की पहचान उसके संस्कारों से ही हो जाती है। किसी को बताने की जरूरत नहीं है। कहते हैं कि अच्छे लोगों की संगत में रहो, क्योंकि सुनार का कचरा भी बादाम से मंहगा होता हैं। इसलिए जीवन में सदैव सकारात्मक सोच रखो। सच्चाई के मार्ग पर चलें, हिंसा, चोरी, बेइमानी, हेराफेरी, नशे जैसे अवगुणों से दूर रहें। शिकायतों की भी इज्जत है तभी तो हर किसी से नहीं की जाती है।

अगर आपकों किसी से कोई शिकवा शिकायत हैं तो उसे हर किसी के सामने डांट फटकार न लगाएं अपितु उसे एकांत में ले जाकर समझा बुझा दीजिए। चूंकि सबके सामने फटकारने से वह लज्जित होकर आपकों ही भला बुरा बोलने लग जायेगा और बात बिगड़ सकती हैं। अतः समाज में शांति और सौहार्द्र बना रहे इसके लिए हर किसी की इज्जत कीजिए। किसी को समझने के लिए हमेंशा भाषा की आवश्यकता नहीं पडती हैं कभी कभी उसका व्यवहार ही बहुत कुछ कह देता हैं.


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देवभूमि समाचार में इंटरनेट के माध्यम से पत्रकार और लेखकों की लेखनी को समाचार के रूप में जनता के सामने प्रकाशित एवं प्रसारित किया जा रहा है।

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