सुख-समृद्धि और परोपकार
सुनील कुमार माथुर
सुखमय जीवन जीना भी एक कला है और जिसने इस कला को सीख लिया उसे जीवन में कभी भी दु:खों का सामना नहीं करना पडता हैं चूंकि वह जानता है कि जीवन में हर रोज परिवर्तनशीलता दिखाई देती हैऔर परिवर्तन प्रकृति का नियम हैं । इसलिए इंसान को हर परिस्थितियों में समान रहना चाहिए । जीवन में सुख समृध्दि तभी मिलती है जब हम परोपकार के कार्य करे।
यह ठीक है कि आज की जिंदगी भागदौड की जिंदगी है और इंसान धन दौलत के पीछे भाग रहा हैं लेकिन फिर भी कामकाज के बीच कुछ समय ईश्वर की भक्ति में लगाना चाहिए। जब हम ईश्वर की भक्ति में लीन होते है तब सारी थकान अपने आप मिट जाती है और चेहरे पर एक नई ऊर्जा देखने को मिलती है और शरीर में स्फ्रूति आती है । अतः ईश्वर भक्ति ही हमें समृध्दिशाली बनाती है।
कहने का तात्पर्य यह है कि अपने जीवन में जितना भी धन कमाये उसमे से कुछ हिस्सा (धन )परोपकार के कार्यो में खर्च करना चाहिए। चूंकि जीवन में दान पुण्य का अपना अलग ही महत्व हैं । हमारे ध्दारा किया गया दान पुण्य ही हमारे जीवन में सुख समृध्दि लाता है और हर समस्या का समाधान आसान कर देता हैं। इस बात का आभास भले ही तुरंत न हो , लेकिन वक्त आने पर पता अवश्य चल जाता हैं।
इसलिए कहते है कि विपरित परिस्थितियों में भी समान बने रहे और आत्मविश्वास को बनायें रखें जब आपके परोपकार से समाज में आपका मान सम्मान बढेगा तो आपके शत्रु स्वतः ही परास्त होगे ।जीवन जीओ शान से और पानी पीओ छान के।
जीवन में न तो अनावश्यक सामग्री खरीदे और न ही उनका मोह करें और न ही उनका संकलन करे । जीवन फैशन और मौज मस्ती में न जीएं अपितु प्रभु की भक्ति के साथ जीवन जीना सीखें । अगर जीवन ईमानदारी के साथ जीए तो जरूरते अपने आप कम हो जायेगी । गलत तरीके से कमाया गया धन ही हमें भक्ति के मार्ग पर जाने से रोकता है।
चूंकि गलत तरीके से कमाया हुआ धन व्यक्ति को हमेंशा विलासिता की ओर ले जाता है न कि भक्ति की ओर अतः ईश्वर भक्ति को अपने जीवन का अभिन्न अंग बनायें और घूमते – फिरते , उठते – बैठते , भ्रमण करते , खेलते – चलते ईश्वर का नाम अवश्य लीजिए और जीवन को सुखमय बनायें । यही वक्त की पुकार हैं।
¤ प्रकाशन परिचय ¤
From »सुनील कुमार माथुरस्वतंत्र लेखक व पत्रकारAddress »33, वर्धमान नगर, शोभावतो की ढाणी, खेमे का कुआ, पालरोड, जोधपुर (राजस्थान)Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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