कविता : बेटी

कविता : बेटी… बेटी तुम्हारा दीदार अनोखा, बेटी तुम्हारा प्यार अनोखा, बेटी तुम्हारा दिल अनोखा, तभी तो तुम मन में समाई हो, बेटी तुम्हारा रूप सुनहरा, बेटी तुम्हारी बात सुहानी… ✍️ वीरेंद्र बहादुर सिंह, नोएडा
बेटी का कोई पर्याय नहीं,
बेटी की कोई छाया नहीं
बेटी का कोई स्वार्थ नहीं
तभी तो बेटी चमकती है…
बेटी तुम्हारा दीदार अनोखा
बेटी तुम्हारा प्यार अनोखा
बेटी तुम्हारा दिल अनोखा
तभी तो तुम मन में समाई हो
बेटी तुम्हारा रूप सुनहरा
बेटी तुम्हारी बात सुहानी
बेटी तुम्हारी मुस्कान मधुर
तभी तो तुम मंद मंद मुस्कराती हो
बेटी तुम्हें ईर्ष्या नहीं
बेटी तुम्हें अभिलाषा नहीं
बेटी तुम्हें अभिमान नहीं
तभी तो तुम स्वाभिमानी हो
बेटी तुम्हारे रूप को देखता हूं
बेटी तुम्हारी मांग पूरी करता हूं
बेटी तुम्हारी वाणी को समझता हूं
तुम्हारी हर बात सत्य हो…
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बेटी तुम दिल की रानी
बेटी तुम महक फैलाती रातरानी
बेटी तुम चंपा, मोगरा, कमल समान
फिर भी कभी नहीं मुरझाती…
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बेटी तुम एक अहोभाव हो
बेटी तुम महकती सुवास हो
बेटी तुम सूरज का प्रकाश हो
फिर भी तुम चंद्रमा की शीतल में समाती हो…
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बेटी तुम चारों ऋतुओं को प्रवर्ती हो
बेटी तुम आठों दिशाओं में बहती हो
बेटी तुम सोलहों पहर में व्यापती हो
फिर भी तुम धीरे-धीरे दुनिया में लहराती हो…
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