कविता : हिम्मत
कविता : हिम्मत, अब किसकी हिम्मत है, जो कोई आंख उठाए, सीमा पर आकर, अपने नापाक इरादों को जतलाए, देश की सीमा के भीतर आकर, निर्दोष लोगों के ऊपर, गोलियां बरसाए। राजीव कुमार झा की कलम से…
अब किसकी हिम्मत है
जो कोई आंख उठाए
सीमा पर आकर
अपने नापाक
इरादों को जतलाए
देश की सीमा के
भीतर आकर
निर्दोष लोगों के ऊपर
गोलियां बरसाए
शत्रु अब सीमा पर
डरता
अपने घर के भीतर
रहता
वह सबको चकमा
देता रहता
बहलाने वाली बातें
वह अक्सर करता
अब वह हमसे
डरता
कश्मीर हड़पने की
साजिश
वह अब भी करता
हिम्मत से
सैनिक सीमा की
रखवाली करते
हाथों में संगीन
संभालकर
सारी रात
अपनी चौकी में
बैठे रहते
सियाचिन की
बर्फीली चोटियों पर
सारी चुनौतियों को
हंसकर झेलते
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