कविता : ब्राम्हण

कविता : ब्राम्हण, जिनके चरण ईश्वर पखारते है। अपने गले लगाया है। क्या भूल गए उन सुदामा को। जिन्होंने अपनी प्रेम और भक्ति से। ईश्वर को त्रिलोकी को झुकाया है। भला ब्राह्मण को कौन हरा पाया है। राही शर्मा की कलम से…
ब्राह्मण तो आदिकाल से ही
आगे रहे हैं।
भला इन्हें कौन पीछे कर
पाया है।
जिनके कंठों में, मां सरस्वती
का वास हो।
अदभुत ज्ञान का प्रकाश हो
भला ब्राह्मण को कौन
हरा पाया है।
शास्त्र,पुराण, इतिहास
गवाह हैं।
ब्राम्हणों का कितना
मान सम्मान है।
ईश्वर ने खुद आगे बढ़कर
इनके आगे अपना शीश
नवाया है।
भला ब्राह्मण को कौन
हरा पाया है।
कुछ पाखंडियों ने इनके
खिल्ली उड़ाया है।
गिराने की कोशिश किया
पर कहां गिरा पाया है।
अंत में अपने ही चेहरे पर
कालिख पुत वाया है।
भला ब्राह्मण को कौन
हरा पाया है।
इनके बगैर कहा कोई
शुभ कार्य हो पाया है।
जिन लोगों ने कोशिश किया
नीचा दिखाने की।
उनके भी गठबंधन
ब्राम्हणों ने ही करवाया है।
भला ब्राह्मण को कौन
हरा पाया है।
जिनके चरण ईश्वर
पखारते है।
अपने गले लगाया है।
क्या भूल गए उन
सुदामा को।
जिन्होंने अपनी प्रेम
और भक्ति से।
ईश्वर को त्रिलोकी को
झुकाया है।
भला ब्राह्मण को कौन
हरा पाया है।
सच्चे साधु संत ब्राम्हणों
का अपमान कर।
कहां मुक्ति मिल पाया है।
ये चंद लोगों की कोशिशें
नाकाम होती रही है।
ये धोती, तिलक, चंदन
हमेशा काम आया है।
भला ब्राम्हणों को कौन
हरा पाया है।
ब्राह्मण तो सूरज की
किरण है।
अपने ज्ञान का प्रकाश
हर जगह फैलाया है।
कुछ मूढ़मति निकले हैं
इन्हें दिया दिखाने।
इनके तेज़ के आगे
कहां टिक पाया है।
भला ब्राह्मण को कौन
हरा पाया है।
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