कविता : तेरा-मेरा ज़ब भाग अलग
कविता : तेरा-मेरा ज़ब भाग अलग, दीपक में तेल असीमित है तेरे मैं मुफलिस हूँ मेरा है चिराग अलग शब्दों में दहक तेरे वक्त का है मेरा वक्त बुरा..मेरी आग अलग तेरा झूठ… मेरे सच पर भारी सुनवाई का भी है विभाग अलग सोने में….सोने को…. खो देगा # सिद्धार्थ गोरखपुरी
तेरा-मेरा ज़ब भाग अलग
फिर शब्दों का होगा हर राग अलग
अलग -अलग ज़ब सबकुछ है…
फिर विचार का होगा संभाग अलग
त्योहारों में कहाँ अब दीवाली
तेरा फाग अलग मेरा फाग अलग
दीपक में तेल असीमित है तेरे
मैं मुफलिस हूँ मेरा है चिराग अलग
शब्दों में दहक तेरे वक्त का है
मेरा वक्त बुरा..मेरी आग अलग
तेरा झूठ… मेरे सच पर भारी
सुनवाई का भी है विभाग अलग
सोने में….सोने को…. खो देगा
सो ले मन भर… पर जाग अलग
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