
सुनील कुमार माथुर, जोधपुर
हे मेरे नाथ! कहां है इस धरती पर स्वर्ग!!
हे मेरे नाथ! आप कितने भोले हैं,
आप कितने दयालु और करुणा-निधान हो।
हर किसी की बातों में आकर
आपने धड़ल्ले से कह दिया कि
इस धरती पर स्वर्ग है! स्वर्ग है!!
लेकिन हे मेरे नाथ!
इस धरती पर कहीं भी
स्वर्ग नज़र नहीं आ रहा है।
यह धरती सोना नहीं, आग उगल रही है।
इस भीषण गर्मी में भी
बिजली की आंख-मिचौनी चल रही है,
पेयजल के लिए जनता तरस रही है,
हर सप्ताह शटडाउन हो रहा है।
चारों ओर लूटपाट, मारा-मारी,
भ्रष्टाचार, बलात्कार, महंगाई,
लापरवाही, बेरोजगारी का तांडव मचा है।
शांति व अमन-चैन मात्र
नारा बनकर रह गया है।
हे मेरे नाथ! इस आग उगलती गर्मी में
कहां है स्वर्ग — यह आप ही बताइए।