कविता : पछतावा
कविता : पछतावा… ज्ञानराशि संचित कर खूब लुटाऊंगा कवि- लेखक बन मां भारती के गुण गाऊंगा राष्ट्र के उत्थान में कुछ योगदान मैं भी दे जाऊंगा पर मैं, कुछ कर न सका, कुछ बन न सका अब मेरा हृदय रोता है मैं कहता हूं सबसे… ✍🏻 मुकेश कुमार ऋषि वर्मा, आगरा (उत्तर प्रदेश)
पल -पल बीत रहा
मेरा क्षण-क्षण बीत रहा
मेरा जीवन तिल-तिल घट रहा
मैं नित-नित मृत्यु के नजदीक जा रहा…
मैंने अपने देखे,
पराये देखे,
मरते देखे,
जलते देखे।
अपना सर्वस्व लुटाकर
अब मैं पश्चाताप में जलता हूं
सोचा था-
कुछ बड़ा करूंगा
जीवन सफल बनाऊंगा
ज्ञानराशि संचित कर खूब लुटाऊंगा
कवि- लेखक बन मां भारती के गुण गाऊंगा
राष्ट्र के उत्थान में कुछ योगदान मैं भी दे जाऊंगा
पर मैं,
कुछ कर न सका, कुछ बन न सका
अब मेरा हृदय रोता है
मैं कहता हूं सबसे
मैं जो कर न सका
अब पछताता हूं –
तुम जो करना चाहो
ठीक समय पर कर लेना
अपना जीवन सफल बना लेना।
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