साहित्य लहर
कविता : पागल है तू चांद
राजेश ध्यानी “सागर”
पागल है तू चांद
फस जाता हें ,
बादलों में ।
रोंशनी न छोंडें तुझें
आभास दिलाती हें
तू हें कहां।
पीणां में हें न यार ,
मैं भी तो तुझें देखने
पीड़ा में हूं यार।
बादल को छटना हें
फिर तेरा दीदार करुगां
जब तक न दिखें
इन्तजार करुंगा।
बादलों के इम्तिहान से
जब तू बाहर आयेंगीं
तेरी रोशनी पीकर
तेरा गुणगान करुगां
बांध लूंगा तुझें आंचल से,
अरे बादल तो क्या
आंसमां को हिला दूंगा।
¤ प्रकाशन परिचय ¤
From »राजेश ध्यानी “सागर”वरिष्ठ पत्रकार, कवि एवं लेखकAddress »144, लूनिया मोहल्ला, देहरादून (उत्तराखण्ड) | सचलभाष एवं व्हाट्सअप : 9837734449Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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