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साहित्य लहर

कविता : मां ने सिखाया था

कविता : मां ने सिखाया था, भ्रष्टाचार की गंगा में डूबकियां लगा रहे हैं पद की गरिमा को ताक पर रखकर हर कोई जनता के हितों की अनदेखी कर उन पर जुल्म ढा रहे हैं, मां ऐसा लग रहा है कि उच्च पदों पर आसीन होकर भी हमारे कर्मचारी, अधिकारी व जनप्रतिनिधि संस्कारों को भूल गये… ✍🏻 सुनील कुमार माथुर, जोधपुर (राजस्थान)

बचपन में मां ने सिखाया था
बच्चों जीवन में सदा सत्य बोलिए
अपने से बडों का मान – सम्मान कीजिए
सदैव अच्छा बोले और श्रेष्ठ बोलें
ज्ञानवान, संस्कारवान व चरित्रवान बने

सच्चे साधु संतो का संग कीजिए
परोपकार, दयावान और क्षमाशील बनें लेकिन
आज देश में सर्वत्र बेईमानी, लूटपाट, छीनाझपटी,
हिंसा, भ्रष्टाचार, का माहौल बना हुआ हैं
उच्च पदों पर आसीन होकर भी
अधिकारी – कर्मचारी व जनप्रतिनिधि

भ्रष्टाचार की गंगा में डूबकियां लगा रहे हैं
पद की गरिमा को ताक पर रखकर हर कोई
जनता के हितों की अनदेखी कर
उन पर जुल्म ढा रहे हैं, मां ऐसा लग रहा है कि

उच्च पदों पर आसीन होकर भी हमारे कर्मचारी,
अधिकारी व जनप्रतिनिधि संस्कारों को भूल गये
देश की प्रतिष्ठा को दांव पर लगाकर
वे अपने ही देश की सभ्यता, संस्कृति को भूल गये

अंहकार व घमंड में चूर होकर अपने ही राष्ट् की
आन, बान, शान से खिलवाड कर रहे हैं

बिहार में बदमाशों का एक नया तबका और बदहाली का आलम


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कविता : मां ने सिखाया था, भ्रष्टाचार की गंगा में डूबकियां लगा रहे हैं पद की गरिमा को ताक पर रखकर हर कोई जनता के हितों की अनदेखी कर उन पर जुल्म ढा रहे हैं, मां ऐसा लग रहा है कि उच्च पदों पर आसीन होकर भी हमारे कर्मचारी, अधिकारी व जनप्रतिनिधि संस्कारों को भूल गये... ✍🏻 सुनील कुमार माथुर, जोधपुर (राजस्थान)

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