कविता : मां की बात मान लें
सुनील कुमार माथुर
ऐ बालक ! तू इतना नन्हा होकर भी
हर वक्त मां से जुबान लडाता हैं
बात – बात में मां की आज्ञा की
तू अवहेलना करता रहता हैं
तू अभी नादान हैं ,
तू मां शब्द का अर्थ नहीं जानता हैं
मां ममता व वात्सल्य की मूर्त हैं
प्यार व स्नेह की मूर्त हैं
दया , करूणा व वात्सल्य का वह सागर है
फिर भी तू उसकी बातों को हर वक्त
मजाक में उडा रहा हैं
अरे बालक ! तू इतना नन्हा होकर भी
हर वक्त मां से जुबान लडाता हैं
अरे ! वह तो हर वक्त तेरे भले के लिए सोचती हैं
तैरे हित के लिए सोचती हैं अतः
मां की बात को अपने जीवन में गांठ बांध ले
हमारे बडे बुजुर्गों का कहना हैं कि
मां के चरणों में ही चारों धाम हैं
लेकिन हे बालक तू यह मत भूलना कि
ऊसके पैरों में जूती भी हैं
अगर तूने मां की भावना को ठेस पहुंचाई तो
वह दिन दूर न होगा जब प्यार दुलार की जगह
मां के पैरों की जूती तुझे खानी पडे
अब भी वक्त हैं कि मां का कहना मान लें
¤ प्रकाशन परिचय ¤
From »सुनील कुमार माथुरलेखक एवं कविAddress »33, वर्धमान नगर, शोभावतो की ढाणी, खेमे का कुआ, पालरोड, जोधपुर (राजस्थान)Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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