साहित्य लहर

कविता : मानवता के दीप

कविता : मानवता के दीप, साहस से जो डटे रहते सदा मंजिल वही पाते हैं। राह रोकने को आती दिवारें सदा बड़ी-बड़ी, सच्चाई पाने को अब हम दिवारों से टकराते हैं। फैलायें आओ मानवता को मिलकर चारों ओर, दुनियां को अपनी एकता आओ हम दिखाते हैं। #भुवन बिष्ट, रानीखेत (उत्तराखण्ड)

हम तो सदा ही मानवता के दीप जलाते हैं,
उदास चेहरों पर सदा मुस्कराहट लाते हैं।

हार मानकर बैठते जो कठिन राहों को देख,
हौंसला बढ़ाकर उनको भी चलना सिखाते हैं।

कर देते पग डगमग कभी उलझनें देखकर,
मन में साहस लेकर हम फिर भी मुस्कराते हैं।

मिल जाये साथ सभी का बन जायेगा कारंवा,
मिलकर आओ अब एकता की माला बनाते हैं।

हिमालय को अनावश्यक बोझ से बचाना होगा

लक्ष्य को पाने में सदा आती हैं कठिनाईयां,
साहस से जो डटे रहते सदा मंजिल वही पाते हैं।



राह रोकने को आती दिवारें सदा बड़ी-बड़ी,
सच्चाई पाने को अब हम दिवारों से टकराते हैं।



फैलायें आओ मानवता को मिलकर चारों ओर,
दुनियां को अपनी एकता आओ हम दिखाते हैं।




👉 देवभूमि समाचार में इंटरनेट के माध्यम से पत्रकार और लेखकों की लेखनी को समाचार के रूप में जनता के सामने प्रकाशित एवं प्रसारित किया जा रहा है। अपने शब्दों में देवभूमि समाचार से संबंधित अपनी टिप्पणी दें एवं 1, 2, 3, 4, 5 स्टार से रैंकिंग करें।

कविता : मानवता के दीप, साहस से जो डटे रहते सदा मंजिल वही पाते हैं। राह रोकने को आती दिवारें सदा बड़ी-बड़ी, सच्चाई पाने को अब हम दिवारों से टकराते हैं। फैलायें आओ मानवता को मिलकर चारों ओर, दुनियां को अपनी एकता आओ हम दिखाते हैं। #भुवन बिष्ट, रानीखेत (उत्तराखण्ड)

Devbhoomi Samachar

देवभूमि समाचार में इंटरनेट के माध्यम से पत्रकार और लेखकों की लेखनी को समाचार के रूप में जनता के सामने प्रकाशित एवं प्रसारित किया जा रहा है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
Verified by MonsterInsights