कविता : गोवर्धन गिरधारी

कविता : गोवर्धन गिरधारी… धरा पर पधारों आप फिर से घनश्याम, बिगड़ रहीं है धीरे-धीरे समय की चाल। हम सब को गोपाल करों आप निहाल, इन गायों का देखों हो रहा है बुरा हाल।। घमण्डियों का घमण्ड किया चकनाचूर, शरणार्थी की रक्षा आपनें की है ज़रूर। उॅंगली पर धारण किया गोवर्धन पहाड़, बखान आपकें पढ़ें और सुनें है भरपूर।। #गणपत लाल उदय, अजमेर (राजस्थान)
आज पूज रहा है आपको सारा-संसार,
मौज और मस्ती संग मना रहा त्यौहार।
कभी बनकर आऍं थे आप राम-श्याम,
कई देत्य-दुष्टों का आपने किया संहार।।
रघुकुल नन्दन आप ही गिरधर गोपाल,
घर घर में सजावट गोबर गोवर्धन द्वार।
जीवन में भर दो हमारे खुशियां अपार,
पहना रहें है हम आपको फूलों के हार।।
धरा पर पधारों आप फिर से घनश्याम,
बिगड़ रहीं है धीरे-धीरे समय की चाल।
हम सब को गोपाल करों आप निहाल,
इन गायों का देखों हो रहा है बुरा हाल।।
घमण्डियों का घमण्ड किया चकनाचूर,
शरणार्थी की रक्षा आपनें की है ज़रूर।
उॅंगली पर धारण किया गोवर्धन पहाड़,
बखान आपकें पढ़ें और सुनें है भरपूर।।
अत्याचार व भ्रष्टाचार हो रहा सब और,
इन पापियों के पाप से बढ़ रहा है शोर।
संकट हरो मुरलीधर जगत पालन-हार,
जिंदगी को दें जाओ खुशियों की भोर।।