कविता : सोनपुर का मेला
कविता : सोनपुर का मेला… होली के उड़ते गुलाल जाड़े के मौसम में ठंडे कपड़ों की दुकानों पर अब आकर घूम रहीं सुंदरियां ओढ़े कश्मीरी शाल यार तुम आज चाय पीने घर आना प्यार का सबसे सुंदर गाना मुझे सुनाना मियां जी को देना ताना अक्सर बन जाते… #राजीव कुमार झा
मेरे प्यार
खूबसूरत ज़ख़्म
तुम्हारे प्यार के दाग़
इंतजार से
तुम करती रहती
अक्सर इंकार
प्यार की
नोंक-झोंक में
अब चलती रहती
तकरार
तुम उनींदी
सावन की मेघमय
रातों में जगती
सुबह के सुरभित
अहसासों से हिम्मत
हार
तुमको हंसती धूप
बुलाती
नदी किनारे
घाट पर आकर
टकराती
सर्दी के मौसम में
भीगे पानी की धार
यार तुम्हारे
दरवाजे पर
सितारों का देर रात तक
मेला जमता
बहुत शौक से
खूब अकेला होकर
तुम्हारे गोरे गालों का
चुंबन लेता
याद आते
होली के उड़ते गुलाल
जाड़े के मौसम में
ठंडे कपड़ों की
दुकानों पर
अब आकर घूम रहीं
सुंदरियां
ओढ़े कश्मीरी शाल
यार तुम
आज चाय पीने घर
आना
प्यार का सबसे
सुंदर गाना
मुझे सुनाना
मियां जी को देना
ताना
अक्सर बन जाते
दिलीप कुमार
देश की संसद में
आकर
हेमा मालिनी ने पूछा है
कश्मीर में फूलों की
नावों पर आकर
चांद किसी से क्यों रूठा है
कैसे देश बना
किसकी चालों से
जलता रहता
सालों भर ईर्ष्या की
अग्नि में पाकिस्तान
आजादी के साथ
मेल मुहब्बत का
केसरिया परचम उठाए
दुनिया में
आगे बढ़ता
मस्त चाल में
हंसता हिंदुस्तान
सारे लोग
मील पर चले कुटाने
कार्तिक का मीठा
धान
सियाचिन पर धूप खिली
कश्मीर की ललनाएं
अंगड़ाई लेती
झूम रहीं
सोनपुर के मेले में
बजती अब शहनाई
नयी नवेली बनकर
प्रियंका
मुर्शिदाबाद से
संसद की शान
बढ़ाने
दिल्ली में रहने आई