कविता : बहाना

कविता : बहाना, बिल्कुल भरोसा नहीं रहा अब जमाने का, अब जमाना नहीं रहा हमें सताने का, जो भी आता मन मुताबिक चला जाता है, अब भरोसा ही नहीं रहा किसी अपने का… मुजफ्फरनगर (उत्तर प्रदेश) से रचनाकार बंजारा महेश राठौर सोनू की कलम से…
कुछ मतलब नहीं रहा जिंदगी जीने का
जख्म भरा नहीं आज तक भी सीने का
कई मर्तबा सोचता हूं सब कुछ छोड़ दूंगा
पर छूटता ही नहीं शौक मेरे पीने का
रोज जिंदगी को बहाना चाहिए जीने का
पता नहीं पूछते कदम अब मयखाने का
शाम ढलते ही अपने आप चल देते हैं
कुछ ना कुछ बहाना ढूंढ लेते हैं पीने का
बिल्कुल भरोसा नहीं रहा अब जमाने का
अब जमाना नहीं रहा हमें सताने का
जो भी आता मन मुताबिक चला जाता है
अब भरोसा ही नहीं रहा किसी अपने का
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