साहित्य लहर
कविता : दिल से दिल मिलाइये

सुनील कुमार माथुर
दीपावली के इस पावन अवसर पर
इतने मंहगे पटाके क्यों छोड रहे हो
पटाखें न छोडकर इसमे हम कुछ
धन राशि और मिलाकर
घर परिवार के सदस्यों के बीच बैठकर
दिल से दिल मिलाइये
बच्चों के संग बैठकर दीपोत्सव पर चर्चा कीजिये
जैसे बाती और तेल दीपक के संग मिलकर
अंधेरे में प्रकाश फैलाते हैं ठीक
उसी भांति हम सब मिलकर
आशिक्षितों को शिक्षित करें और
अज्ञानता रुपी अंधकार को मिटाकर
ज्ञान रुपी प्रकाश फैलाये और
दिल से दिल मिलाइए
घृणा , नफरत , राग ध्देष का जहर निकाल कर
दया , प्रेम , करूणा , वात्सल्य , संयम , धैर्य ,
सहनशीलता रुपी अमृत भरकर
एक नये भारत का नव निर्माण करे
आइयें और दिल से दिल मिलाइए
¤ प्रकाशन परिचय ¤
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From »सुनील कुमार माथुरस्वतंत्र लेखक व पत्रकारAddress »33, वर्धमान नगर, शोभावतो की ढाणी, खेमे का कुआ, पालरोड, जोधपुर (राजस्थान)Publisher »देवभूमि समाचार, देहरादून (उत्तराखण्ड) |
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Nice
Nice
Nice
Nice poem
Good